ग़ज़ल-- चाहत दरमियां न जाने दस्तक दे के कहां चल दिए। यादों की किताब लिख के चल दिए।। तुम्हारी परछाई आती नजर , खुद को आइने में जब देखता। इतनी भी खता क्या …
वहाबियों का इंतकाम जंक लोहा तप्त कर सही वार करो। रूगणं समवाहकों का इंतकाल करो।। जाग उठो जन जग के तपस्वी , शयन कक्ष की मर्यादा छोड़ो। तब्लीगी जमात के …
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