ग़ज़ल-- चाहत दरमियां
यादों की किताब लिख के चल दिए।।
तुम्हारी परछाई आती
नजर,
खुद को आइने में जब देखता।
इतनी भी खता क्या आइने से,
निगाह से ओझल आइना होता।
जली शमां को वो बुझा के चल दिए।
यादों की किताब लिख के चल दिए।।
मुस्कुराती इन अदाओं से नजर,
कातिल दिल का
कोना होता।
हंसी अदा की दिल
दस्तक से,
जज्बात में सैलाब उमड़ जाता।
ओंठों को मुस्कराकर छोड़ चल दिए।
यादों की किताब लिख के चल दिए।।
कदमों की चहलकदमी जब भी,
कानों को होने का अहसास देती।
निगाहें फेरता हूं
इधर उधर,
बैचैन दिल की धड़कन बढ़ती।
निगाहों को बैचैन कर कहां चल दिए।
यादों की किताब लिख कर चल दिए।।
आंखों सपने अनगिनत
देकर,
झकझोर नींद मेरी
उड़ा देती।
अहसास को अपना
कराकर,
अफसाना कोई फिर
से बुनती।
सपनों को तन्हा कर कहां चल दिए।
यादों की किताब लिख के चल दिए।।
सुनील सिंधवाल
"रोशन"(स्वरचित)
काव्य संग्रह "चाहत के पन्ने"
1 टिप्पणियाँ
सुंदर ग़ज़ल
जवाब देंहटाएंतुम्हारी परछाई आती नजर,
खुद को आइने में जब देखता।
इतनी भी खता क्या आइने से,
निगाह से ओझल आइना होता।
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