तिबार- नमोली (अंद्रवाडी) गुप्तकाशी रूद्रप्रयाग
'श्री गंगाधर सेमवाल जी'
निर्माण लगभग-1935 के दौरान।
काष्ठकला-पंचम सिंह और साथी, कालीमठ घाटी।
जब देश स्वाधीनता संग्राम की लडाई लड रहा था उस अविस्मरणीय समय की समौंण है ये तिबार।
चार खंबे और चारों खंबों पर दरवाजे, दिनभर ये तिबार खुली रहती है यानि तीनों दरवाजे फोल्ड, और दिनमान बड़े बुजुर्गों, बच्चों की चौपाल सजी रहती थी।
जिसमें घाम-बरखा, सौंण-भादों, सुबह-शाम, चाय केतली पहुच जाती थी और सब मिलकर चाय पीते इन छज्जों मैं।
मैंने खुद नब्बे के दशक मैं इस तिबार को करीब से महसूस किया, और बहुत समय गुजारा है इसके नजदीक ।
ये वही तिबार है जिसमें गंगाधर सेमवाल जी जैसे विराट जननायक का जीवन पला, बढा।
सामान्यतः पहाड़ों पर पुराने मकानों का विश्लेषण करने में लगता है कि पहाड़ी पर ऊपर जाते जाते ऊंचाई बढने पर घरों की ऊंचाई कम देखी जा सकती है बर्फ, हिमपात, बारिश ठंड कई सारे कारण थे इसके।
सामुहिक परिवारों की विरासत के प्रत्यक्ष गवाह है पहाड़ की तिबारे, मकान छोटे-मंझे पर भरपूर सदस्य!
ठीक इसके पीछे विराट हिमालय चौखंबा श्रृंखला के दर्शन गुप्तकाशी और ऊखीमठ के बीच सुखद अहसास करवाते है।
इस शानदार तिबार का लुक आपको और भी आकर्षक लगेगा जब भगवान सूर्य प्रातः उदय हो रहे हो और ठीक इसके पीछे विराट हिमालय चौखंबा श्रृंखला के दर्शन हो रहे हो।
मकान में खोळी का अभाव है, तिबार तक पहुचने के लिए तिबार के आगे छै सीढ़ियाँ है। तिबार के चारों खंबे मजबूत सजावट के तराशे पत्थर पर मजबूती के साथ टिके है, जिनके ठीक आगे छज्जे की पठ्ठाली है जो कई पीढ़ियों की साक्षी बनकर आज भी हमारी मकानों को टक्कर दे रही है।
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