कड़ुआ किन्तु सत्य
भाग - 3
यह कविता चाटुकार पत्रकारों को समर्पित है सच्चे ईमानदार पत्रकार स्वयं को यहां न देखे।
पत्रकार
कब तक लिखने के दाम लोगे
कभी तो मुफ्त में भी लिख दो
कब तक राजनीति की गोद मे झूलोगे
कभी जनता की भी तो सुन लो
क्यो अफवाहों के रोज नए पहाड़ बना रहे हो
कभी तो सच्चाई की कलम दावत भी चुन लो
बेईमानो को ईमानदार बना रहे हो
जाने कितने में स्याही बेच रहे हो
कभी जरा ज़मीर अपना जगा तो लो
निर्दोष का साथ दोषी को सजा दिला दो
अमीरो के तो हर आँसू पोछने को तैयार रहते हो
किन्तु गरीबो की आँसू की कीमत क्यो नही पहचानते हो।
अनोप सिंह नेगी(खुदेड़)
9716959339
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