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Khatling Yatra खतलिंग यात्रा

“मैं लिखता नही कलम चल जाती है,
शब्द बनाता नही अक्षर जुड़ जाते है,कोशिश करता हूँ बहुत कुछ लिखने की,ख़याल मुझे मेरे पहाड़ो की ओर ले जाते है
राह कोई भी क्यों न देखु लेकिन, रास्ते पहाड़ो में ही निकल आते है,चाह तो दिल में बहुत है लेकिन,चाहत पहाड़ो पर ख़त्म हो जाती है 
सपने तो बहुत तो बहुत है आँखों में लेकिन,नींद पहाड़ो में पहुचकर खुल जाती है, प्यास तो बहुत है इस कण्ठ में, बुझती पहाड़ो से निकलती धाराओ से है’’

खण्डाः पञ्च हिमालयस्य कथिताः नैपालकूमाँचंलौ।
केदारोथ जालन्धरोथ रूचिर काश्मीर संज्ञोन्तिमः॥


          खतलिंग महादेव उत्तराखण्ड राज्य के टिहरी गढ़वाल जनपद में चीन की सीमा पर स्थित है।खतलिंग महादेव एक अध्यात्मिक स्थल के साथ-साथ एक मनमोहक रमणीक शांत पर्यटन स्थल भी है। इसको पर्यटन स्थल बनाने का श्रेय जाता है श्री इंद्रमणि बडोनी जी को जिन्होंने इस क्षेत्र को पर्यटन स्थल बनाने के लिए बहुत मेहनत की और तत्कालीन आयुक्त सुरेन्द्र सिंह पांगली के साथ मिलकर खतलिंग महायात्रा की शुरुआत की बुग्याल, मात्या, पंवाली कांठा, सहस्रताल जैसे खुबसूरत स्थान यहाँ की सुन्दरता को और भी अधिक बढा देते है टिहरी से खतलिंग की ओर चलते हुए राह में घुत्तू गाँव है यही टिहरी जिला मुख्यालय से लगभग 110 और अस्थाई राजधानी से लगभग 215 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है गंगी गाँव
     
          दोस्तों आपको बताते चले की गंगी गाँव प्रकृति की गोद में ऊँचे-ऊँचे बर्फीले पर्वतो के बीच बसा एक ऐसा गाँव है जो की पूरे जनपद में अपनी बोली-भाषा, संस्कृति को अभी भी संजोये हुए है, और यह नजदीक से देखने के लिए आपको सोमेश्वर देवता के मेले में मिल जायेगा। दुःख इस बात का है की यह गाँव एक ऐसे जनपद से है जहां से देश के आठ राज्यों को बिजली प्राप्त होती है, लेकिन यहाँ आज तक लोग बिजली के लिए तरस रहे हैं। लगभग 15 किलोमीटर की दूरी पर देवलिंग गाँव तक बिजली है, रीहचक में पन-बिजली का कार्य लगभग पिछले चार-पांच सालो से चल रहा है कब तक पूरा होगा शायद स्वयं विभाग को भी जानकारी नहीं है।जहां आज देश डिजिटल भारत होने के दावे कर रहा है वही इस गाँव में एक फ़ोन है, और उसीसे पूरे गाँव का काम चलता है।गाँव में मोबाइल तो लगभग सभी के पास है लेकिन नेटवर्क नहीं लगभग 2 किलोमीटर दूरी पर नेटवर्क काम करते है, बाकि गीत सुनने मात्र के लिए है सोलर लाइट से ही मोबाइल को चार्ज करते है

स्वास्थ्य सुविधाये:- यदि बात करे स्वास्थ्य सुविधाओ की तो एक छोटा अस्पताल है, जिसमे एक चिकित्सक और एक ए एन एम(नर्स में सबसे छोटा पद) है डॉ. विनोद उनियाल जी है जो पन्द्रह दिन तक सेवाए प्रदान करते है यातायात साधनों से लगभग 10 से 12 किलोमिटर की दूरी पर है।ये वो गाँव है  जहां आज भी हमारे उत्तराखण्ड की संस्कृति, सभ्यता त्यौहार आदि जीवित है यहाँ के लोगो कृषि और पशुपालन ही आजीविका है शासन इस ओर आँखे क्यों मूंदे बैठा है, आज तक यह समझ से बहार है। गंगी के आलू पूरे उत्तराखण्ड जाने जाते है, लेकिन यातायात के साधनों के अभाव के कारण घनसाली से आगे नहीं पहुँच पाते है।एक समय में सुना है कि तिब्बत, नेपाल के लिए रस्ता नजदीक हुआ करता था।अब तो इन देशो के लिए रस्ते भी अलग हो गए है।यहाँ के प्रधान है श्री नैन सिंह जिनके बारे में कहा जाता है कि उनके पास सम्पत्ति कितनी है वो स्वयं भी नहीं जानते।आर्थिक रूप से गंगी एक सम्पन्न गाँव है किन्तु सरकारी सुविधाओ के लिए ये गाँव उतना ही गरीब है
     वेशभूषा यहाँ की आज भी बिल्कुल पारम्परिक है।यहाँ की महिलाये आज भी ऊनी कम्बल पहनती है साथ में स्वेटर।बुलाख, पौंछि, जैसे ज़ेवर आज भी इनके पास धरोहर है पूर्वजो की। पुरुष गुलख और हिजार(डीगला और ऊनी पायजामा) पहनते है बोली इनकी गढ़वाली भाषा से भिन्न है लेकिन गढ़वाली बोल और समझ लेते है
त्यौहार:- त्यौहार की अगर मैं बात करू तो आप जानकर दंग रह जायेंगे कि यहाँ होली, दशहरा, दिवाली रक्षाबंधन जैसे त्यौहारों के बारे में जानते भी नहीं है।दंगुडी का मंडान, जातरा थला जैसे इनके त्यौहार है, तथा सोमेश्वर देवता यहाँ के लोगो के अराध्य है एक और चौकाने वाली बात का जिक्र करूँगा यहाँ शादियां परिवार में भी हो जाती हैदो सगे भाई के बच्चो में शादी कर दी जाती है, कोशिश यही रहती है कि गाँव में ही शादी हो जाये बाकि रिश्ते बहार भी होते है।यहाँ दो परिवार ऐसे भी है जो की यहाँ घरजवाई आये थे जो अब यही रहते है।गंगी गाँव चार उप बस्तियों में बटा हुआ है जो इस प्रकार है 1. देवोखरी 2. नलाण 3. लोणी 4. रीह्चक
पलायन के इस दौर में भी प्रत्येक बस्तियों में 30 से 40 परिवार रहते है।गंगी और रीह्चक में आपको ठहरने के लिए गढ़वाल मंडल(GMVN) के होटल मिल जायेंगे यहाँ कोई ऐसा परिवार नही जिसके पास बकरिया न हो हर किसी के पास कम से कम 30 से 40 बकरिया है।कई ऐसे परिवार भी है जिनके पास 700 से 800 तक भी बकरिया मिल जाएँगी।इन बकरियों का प्रयोग पहले ये लोग सामान ढ़ोने में भी करते थे, लेकिन अब रीहचक से घोड़े का प्रयोग करते है। घुत्तू से रीह्चक तक मोटर मार्ग उपलब्ध है
शैक्षणिक व्यवस्था कुछ ऐसे है:-
एक उच्चतर विद्यालय जोकि गंगी में है और 3 प्राथमिक विद्यालय है जो गंगी, लोणी, और रीह्चक में है। 

        दोस्तों अब आगे चलते है खतलिंग ग्लेशियर की ओर यही से भिलंगना नदी का उद्गम हुआ है।भिलंगना की सहायक नदिया इस प्रकार है
        बालगंगा उद्गम महासरताल, धर्मगंगा उद्गम सहस्त्रताल और दूधगंगा उद्गम मंसूरताल आदि है।
बालगंगा और धर्मगंगा का संगम बूढाकेदार नामक स्थान पर होता है। बूढाकेदार को उत्तराखण्ड का  पांचवां धाम माना जाता है। बालगंगा और भिलंगना का संगम सिन्दूल नामक स्थान पर होता है। इसके बाद भागीरथी आगे बढते हुए देवप्रयाग में पहुंचती है। खतलिंग को पांचवे धाम के रूप में जाना जाता है।खतलिंग ग्लेशियर समुद्रतल से लगभग 3700 मीटर की ऊंचाई पर स्थित है। खतलिंग ग्लेशियर पहुँचने के रास्ते में चौकी बुग्याल रुद्रागंगा, हिमानी गुफा, दुमलिया ताल भी दर्शनीय हैं। यहाँ से आगे लगभग 7 - 8 किलोमीटर की दूरी तय करके गंगोत्री पंहुचा जा सकता हैयहाँ से 6500 मीटर की ऊंचाई पर स्थित है सतलिंग स्फटिक लिंग जो ग्रेनाइट धातु का बना हुआ है, किन्तु बर्फ इसपर नही टिकती हैभगवान शिव के आत्मलिंग के रूप में भी इस स्फटिक लिंग को जाना जाता है 6460 मीटर जोगिनी चोटी, मयाली टॉप होते हुए वासुकीताल के रास्ते 14 किलोमीटर यात्रा तय करके केदारनाथ धाम पहुँचा जा सकता है मयाली टॉप से तिब्बत का इलाका दिखाई देता है, बल्कि यु कहे की सम्पूर्ण पहाड़िया और चोटिया नज़र आती है। 
    दोस्तों हजारो वर्ष पूर्व गौमुख ग्लेशियर गंगोत्री से मिलता था, लेकिन आज इनके बीच की दूरी लगभग 19 किलोमीटर हो गयी है मिलम ग्लेशियर 1828 में मिलम गाँव से मात्र 2 किलोमीटर की दूरी पर था, जो आज लगभग 6 से 7 किलोमीटर से भी अधिक दूरी पर है खतलिंग ग्लेशियर का मुख जो चौकी ताल पर था, अब सात किलोमीटर दूर है 1808 में गंगोत्री क्षेत्र में गंगा मूर्ति की पूजा की जाती थी, यहाँ 10 से 15 लोग ही रहते थे गंगा की मूर्ति के साथ ये लोग भी वापिस अपने गाँव वापिस चले जाया करते थे 1981 की जनगणना के अनुसार गंगोत्री की स्थाई आबादी लगभग 125 थी, जो आज हजारो में हैपूर्ण कुंभकाल के वक्त ही बद्रीनाथ से ज्यादा श्रद्धालु आते थे। 1808 के पूर्ण कुंभ में 45 हजार श्रद्धालु बद्रीनाथ पहुँचे थे, जबकि 2010 के पूर्ण कुंभ के बाद दो दिन में यह संख्या पार कर ली गई। 1808 में केदारनाथ की यात्रा विषम थी। उस साल केदारनाथ गए कई यात्री मारे भी गए थे। अब तमाम साधन, बढ़ते गाड़ियों व रेल नेटवर्क बढ़ने से तीर्थयात्रियों की संख्या में असाधारण वृद्धि हुई है। इसी तरह इस क्षेत्र के ग्लेशियरों में भी ट्रैक कर जाने वालों की संख्या में वृद्धि हो रही है।
दोस्तों आज हम किसी भी प्राकृतिक आपदा के लिए प्रकृति को या फिर सरकार को दोष देते है, लेकिन कभी स्वयं को भी देखा हमने हम धार्मिक स्थलों पर जाते है लेकिन श्रधा से नहीं अपितु मनोरंजन के लिए, शौक के लिए, शादी करके हनीमून मनानेप्रत्येक तीर्थ स्थानों को हमने अपवित्र कर दिया है।विकास की दौड़ में हम अपनी धरोहरों को खोते चले जा रहे है।पहाड़ो को काट-काट कर उनकी हालत जीर्ण कर दी है, आखिर कब तक प्रकृति चुपचाप इस दर्द को झेलती रहेगी, उसे भी तो करवट लेनी है और जब प्रकृति करवट लेती है नतीजा क्या होता है आंकड़े सामने है।
इस लेख को लिखते हुए जो जानकारियां मिली बहुत सी नयी बाते जानने को मिली और सबसे बड़ा निचोड़ मुझे मिला वो ये था कि जहा विकास हुआ है वहां से पलायन भी हुआ है।गंगी जैसे गाँव में भले ही विकास नही हुआ इस बात का दुःख तो है, लेकिन मैं अगर व्यक्तिगत विचार रखू तो शायद पहाड़ो में विकास न होना ही पहाड़ो के लिए अधिक फायदेमंद है। नजाने क्यों लोग विकास होता देख अपनी जरूरते और बढा लेते है, और पूरी न होने पर पलायन करने लगते है। विकास होना चाहिए लेकिन स्वास्थ्य सुविधाओ का, शिक्षा का, हमारी समाप्त होती संस्कृति का, रीति-रिवाजों का, और हमारी मानसिकता का।


हिलिगे मेरु पहाड़, हे विकास तेरी आस मा
खौंदार व्हेगेनि पहाड़ हमरा, हे विकास तेरी आस मा
विनाश ही विनाश दिखेणु पहाड़ कु, हे विकास तेरी आस मा
पर तू दिखेंदु नि छै, दूर तक कैकि आस मा

घास लखडु सब हरचिगेनि, हे विकास तेरी आस मा
बाँज-बुरांश भी नि दिखेंदु अब, हे विकास तेरी आस मा
डाली बोटी सब कटेगेनि, हे विकास तेरी आस मा
पर तू दिखेंदु नि छै, दूर तक कैकि आस मा

छोया-पंदेरा सब बिश्कि गेनी, हे विकास तेरी आस मा
रौला-गदना भी मुख मोड़ी गेनी, हे विकास तेरी आस मा
डोखरी-पुंगड़ी सब बर्बाद व्हेगेनि, हे विकास तेरी आस मा
पर तू दिखेंदु नि छै, दूर तक कैकि आस मा

पहाड़ कु युवा आज भी भटकुणु च, हे विकास तेरी आस मा
पहाड़ी पहाड़ छोड़ी चलिगे, हे विकास तेरी आस मा
पहाड़ कु पहाड़ी खुदेणु च, हे विकास तेरी आस मा
पर तू दिखेंदु नि छै, दूर तक कैकि आस मा

ग्राम – बज्रखोड़ा
पट्टी – बिचला चौकोट
जिला – अल्मोड़ा
उत्तराखण्ड




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