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पहाड़

मैं लिखता नही कलम चल जाती है
शब्द बनाता नही अक्षर जुड़ जाते है
कोशिश करता हूँ बहुत कुछ लिखने की
ख़याल मुझे मेरे पहाड़ो की ओर ले जाते है
राह कोई भी क्यों न देखु लेकिन
रास्ते पहाड़ो में ही निकल आते है
चाह तो दिल में बहुत है लेकिन
चाहत पहाड़ो पर ख़त्म हो जाती है
सपने तो बहुत तो बहुत है आँखों में लेकिन
नींद पहाड़ो में पहुचकर खुल जाती है
प्यास तो बहुत है इस कण्ठ में
बुझती पहाड़ो से निकलती धाराओ से है

अनोप सिंह नेगी(खुदेड़)
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