आरक्षण
आरक्षण इस चार एक छोटे से शब्द ने देश में आज भी भेद-भाव का माहौल बनाया हुआ है, इस स्थिति पर कुछ लाइन पेश कर रहा हु आशा करता हु इस कविता को गलत दिशा की ओर नही मोड़ा जायेगा और सभी को पसंद आएगी। मैं इस कविता को किसी भी धर्म या जाति को केन्द्रित करके नहीं लिख रहा हु बस आरक्षण की निति बदलनी चाहिए इस विषय पर लिख रहा हु।
आज देश का हर नेता कहता है मैंने ये कर दिखाया वो कर दिखाया
कोई इनसे पूछे क्या कोई आज तक आरक्षण ख़त्म कर पाया
कहते है मैं बिजली लाया मैं पानी लाया
कोई इनसे पूछे क्या गरीबो के लिए भी कोई आरक्षण है बनाया
आरक्षण का ये राक्षस पूरे भारतवर्ष में है छाया
है क्या ऐसा भी कोई नेता जो हटा सके देश से इस राक्षस का साया
हटाये तो तब कोई जब ख़त्म होगी इनकी मोह-माया
वर्ना हमें तो लगता है देश के हर नागरिक का वोट जायेगा जाया
दोस्तों ये आरक्षण एक बहुत बड़ा अभिशाप है
भारतभूमि पड़ चुकी इसकी गहरी छाप है
कहते है सब एक सामान है
लेकिन फिर भी आरक्षण की निति से एक-एक नागरिक का कर रहे अपमान है
दिल किसी का मैं दुखाना नही चाहता निति-राजनीति में पड़ना नही चाहता
लेकिन क्या करू मजबूर हु मैं भी जब संसद में बैठा कोई खुद को बदलना नही चाहता
सुन लो संसद में बैठने वालो देश संसद में बैठने से नही चलेगा
देश चलने के लिए जनता के बीच में आना पड़ेगा
अनोप सिंह नेगी(खुदेड़)
9716959339
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