Top Header Ad

Banner 6

Roshan Ki Kalam Se रोशन की कलम से

रोशन की कलम से---------
===========

कर्तव्य और  मर्यादा  विमुख जब,
इंसानियत  ताक   पर  रखी जाती।
जीवन   के  हर  कदम  कदम पर,
Roshan Ki Kalam Se रोशन की कलम सेमानवता  खुद में फरियादी लगती।।51

कीड़े मकोड़ों  सी हो गयी जिंदगी,
चमन में इंसान की कैफियत कहां।
समय  चक्र  के  बंधन  बंधा  ऐसा,
लुटा  अपने  ही  मकड़जाल  यहां।।52

अहंकार से टूटता दिल का मुकाम,
आवश्यकताएं   जब  हावी  होती।
मृत्यु  के  सामने  असहाय  होकर,
जीने को और भी अभिलाषा होती।।53

प्रतिघात शरीर  करने कहां रोग में,
हिम्मत तो खुद इंसान बढ़ावा देता।
पंचतत्वों  के  योग  शरीर  सरंचना,
लड़ने से पहले खुद हिम्मत हारता।।54

समय  विधान में  तराजू  के पलड़े,
दांव न जाने कब किस का है भारी।
महलों और झौपडियों को क्रमबद्ध,
मौन रहकर  समय  देता बारी बारी।।55

     सुनील सिंधवाल "रोशन" (स्वरचित)
          काव्य संग्रह "चाहत के पन्ने"।

एक टिप्पणी भेजें

0 टिप्पणियाँ