ऋषियों से अन्याय
===========
शोकाकुल हुए अपने ऋषिकुल में।
कैसी व्यवस्था हो गयी धरती पर,
पशु से भी बदतर स्वर्ग रूपी जनत में।।
पापों से भरकर सहिष्णु जीवन जीते,
असहाय भगवा ऋषियों की छाती में।
दरिंदगी के सारे जतन कर दानवों ने,
प्रलय साक्षी किया अपनी प्रवृत्तियों में।।
मूर्छित पड़ी है स्वेत कबूतरों की काया,
दुश्साहसी भेड़िए जीते इनके आंगन में।
लहु के रंग में अंतर करके वार किया,
अवसरवादी मानवता के सारे नियमों में।।
आने वाला कालचक्र कैसे माफ करेगा,
नोचने वाले वहसी कारिंदों के गुनाह को।
आलयों में कुछ मौन धारण कर बैठे हैं,
कुछ वहाबी सीख देते गिद्धों के झुड को।
सुनील सिंधवाल "रोशन" (स्वरचित)।
1 टिप्पणियाँ
समसामयिक रचना
जवाब देंहटाएंयदि आप इस पोस्ट के बारे में अधिक जानकारी रखते है या इस पोस्ट में कोई त्रुटि है तो आप हमसे सम्पर्क कर सकते है khudedandikanthi@gmail.com या 8700377026