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Roshan Ki Kalam Se रोशन की कलम से

रोशन की कलम से------
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कोई तन का और कोई  मन का,
भिखारी यहां हर कोई  बन बैठा।
सभी हैं  निगाह  गड़ाए  कूंचे पर,
Roshan Ki Kalam Se रोशन की कलम सेहर एक डाल पर एक उल्लू बैठा।।46

मजहब  जब बैर  नहीं  सिखाता,
धर्म-धर्म  से  इतनी नफ़रत क्यों।
धर्म  जब  केवल  इंसानियत का, 
इंसान इंसान रक्त का प्याशा क्यों।।47

गली  गली    में   मंदिर  मस्जिद,
बैठे   यहां  सभी   दीन  रखवाले।
अल्लाह  भगवान   में  बांट   रहे,
भिखारी  रूप   अजब   मतवाले।।48

चश्मा लगा कर  मानस  रूप को,
यहां   रंग   रूप  देख   बांट  रहा।
जीवन  शैली  संस्कृति  भाषा को,
पहनावे  में  हर   हास  उड़ा  रहा।।49

कोई   कौवा  रुप  आंगन  पाकर,
अपने पुरखों का साया  बतलाता।
किसी    ने   मोमबत्ती   जलाकर,
कब्र में  जिंदा होना सर्वांग रचाया।।50

        सुनील सिंधवाल रोशन (स्वरचित)
            काव्य संग्रह "चाहत के पन्ने"।

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