शीर्षक "झांझी मनखी"
.सुबेर बटी शाम तक, बैठयूं रेंद अपडा बजार मा,
नशा मा टून्न व्हेकी, रात आणू ऊ अपडा घार मा,
पिताजी आला, त हमखण कुछ ल्याला बच्चा सोचणा,
मगर झांझी मनखी, खाली ही आणू अपड़ा डयार मा,
.
दारू पेकी झांझी मनखी, अपथें बाहुबली चिताणू चा,
अपडा बीबी_बच्चों थें, गुस्सा मा आंखा दिखाणू चा,
मगर कवि सतीश थें, इन लगद कि झांझी मनखी,
अपडा अर अपडा परिवार कु, खून थें सुखाणू चा,
.
झांझी मनखी बजार पिणाकु, नथर रोज बजार जाणाकु सवाल खडू नि हूंदू,
झांझी मनखी पेले मगर यू बी सोच, कि दारू अपडा परिवार से बडू नि हूंदू,
.
झांझी मनखी पांच सौ रूप्या कु, शराब थें ना प्यावा,
वैका बदल अपड़ू परिवार खण, राशनपाणी ल्यावा,
अपडू अर अपडा परिवार कु, मुंडारू नि कैरी रे झांझी,
कवि सतीश अपील करदू, सबथें चैन से खाण दयावा.
.
नोट: - नशेड़ी आदमी इस कविता को दिल पर ना लेकर दिमाग पर लें,
शायद कुछ फायदा हो जाएं, जोकि केवल आपके हित के लिए लाभकारी साबित होगा
.
कवि- सतीश सिंह बिष्ट "पहाड़ी",
ग्राम-नैखाणा, (नैनीडांडा),
पौड़ी गढ़वाल, उत्तराखंड,
0 टिप्पणियाँ
यदि आप इस पोस्ट के बारे में अधिक जानकारी रखते है या इस पोस्ट में कोई त्रुटि है तो आप हमसे सम्पर्क कर सकते है khudedandikanthi@gmail.com या 8700377026