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Roshan Ki Kalam Se रोशन की कलम से

रोशन की कलम से------
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आराम    हराम   की  आदतों  से,
Roshan Ki Kalam Se रोशन की कलम से
लूट खसोट की  सोच  हावी होती।
नजर   गरीबों    की   झोली   पर,
बस  लुटेरों  की   दुनियां   सजती।40

शोहदों  के  वहसीयत   के   नीचे,
अबला और  रंक का   हरण होता।
मानवता को  छिन्न   भिन्न   करके,
प्रलाप में   केवल    क्षरण   होता।41

ऊंची   मीनारें  भी  स्तब्द   होकर,
तमाशबीन   बन   तमाशा  देखती।
इसी     अनभिज्ञता   के    कारण,
जनता   रौद्र  रूप  धारण   करती।42

घर     चारदीवारी      के     अंदर,
चारपाई भी अपनी   व्यथा बताती।
यहां  कोई है जो गरीब  की सुनता,
सबकी   केवल    झोली  ही भरती।43

आंसुओं लिखी आबरू  की गाथा,
पर्दानशी    दरवाजे  वयां    करती।
सुबकती      रहती     दीवारों    में,
बरबस    निशब्द   होकर    सहती।44

गरीब    अमीर    भावना  पाटकर,
समरस   में   असहिष्णुता    बढ़ती।
अंतस्  ज़मीर  फिर   हावी  होकर,
सहिष्णुता  को  नागवार   समझती।45

सुनील सिंधवाल "रोशन" (स्वरचित)
      काव्य संग्रह "चाहत के पन्ने"।

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