जीवन में तमिलनाडु जाने का अवसर बस दो तीन बारी ही मिला है, तामिलनाडू का ख्याल मन मे आते ही मेरे दिमाग मे मिट्टी की सौंधी सौंधी ख़ुशबू के साथ पोंगल जो एक तरह की स्थानीय खिचड़ी है तैरने लगती है।
जब मैं तामिलनाडू गया था तो पोंगल हर जगह उपलब्ध था छोटी से छोटी रेहड़ी और बड़े से बड़े रेस्तरां तक।
कसम से जी भर के पोंगल खाया, जिसकी याद हमेशा ताजी मन मे छाई रहती है।
आज एक तस्वीर मिली है सोशल मीडिया में जिसने मेरे जैसे किसी देसी खान पान के भगत ने पूरे राष्ट्र की खिचड़ियों को जिओ टैग करके एक बड़े उपकार का काम किया है।
लॉकडाउन जान बचाओ पर्व के दौरान भी खिचड़ी ने मेरा बड़ा साथ दिया है जो आगे निर्बाध रूप से जारी है।
हारे की सुविधा यहां शहर में उपलब्ध ना होने की वजह से अनेकों बेमिसाल अनुभवों को शिद्दत से मिस किया जा रहा है।क्योंकि जब दफ्तर चलता था तो डेली कहीँ ना कहीं आना जाना लगा ही रहता था गांव देहातों में।
अब घर मे बैठ कर यादों की जुगाली से काम चलाया जा रहा है और यह एक बड़ा शानदार और मज़ेदार अनुभव है।
लेख प्राप्त
कमल जीत जी की वॉल से
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