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Kismat Ke Khel Nirale किस्मत के खेल निराले

किस्मत के खेल निराले
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खुद को नाप लिया जब हैसियत में।
रंगबाज बन फिरते क्यों महफ़िल में।।
Kismat Ke Khel Nirale किस्मत के खेल निरालेमुकद्दर में जब   झोपड़  पट्टी,
      हासिल क्या  होगा महलों से।
अंधेरी  बस्ती  में बसने वालों,
      क्या होगा  ख्याली दुनिया से।
खुद को नाप लिया जब हैसियत में।
रंगबाज बन फिरते क्यों महफ़िल में।।     
कुछ  देर  चिराग   जलाने से,
      क्षणिक  अंधेरा छंट जायेगा।
सदियों  बसा अंधेरा जो मन,
      कैसे  जगत से  हट  जायेगा।
खुद को नाप लिया जब हैसियत में।
रंगबाज बन फिरते क्यों महफ़िल में।।
मालूम है गर्दिश  के तारों को,
      कोई  नहीं  इनका  रखवाला।
अदम्य  साहस भरा   जिसमें,
      उभरता    वही   हिम्मतवाला।
खुद को नाप लिया जब हैसियत में।
रंगबाज बन फिरते क्यों महफ़िल में।।
देख  दूर  महलों  की  रौनक,
      हारा इंसान अपने फितरत से।
भूल   चुका  मेहनत  मजदूरी,
      भरा  इर्ष्या अहंकार जलन से।
खुद को नाप लिया जब हैसियत में।
रंगबाज बन फिरते क्यों महफ़िल में।।
नदी  देख  दूर नीर  पिपासा,
      खुद मंजिल के पास पहुंचता।
सजाकर सपने ध्यान मुद्रा से,
      कभी  महल  नहीं बन  पाता।
खुद को नाप लिया जब हैसियत में।
रंगबाज बन फिरते क्यों महफ़िल में।।
पथ  पर  कर्म विहिन  होकर,
      पत्थरों  के  महल नहीं बनते।
कर्म  हौंसले  तूफान बनाकर,
      मन  सुकून  महलों के सजते।
  खुद को नाप लिया जब हैसियत में।
  रंगबाज बन फिरते क्यों महफ़िल में।।   

  सुनील सिंधवाल "रोशन" (स्वरचित)
      काव्य संग्रह "हिमाद्रि आंचल"

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