शीर्षक च- "बसगाल किलै नि लगणू चा'?"
.मनखी, पशु-पक्षी, पेड़-पौधा, डांडा-धार,
अबकी दा सब्बी लग्यां, बसगाल कु सार,
13 गती आषाढ़ कु मैना बी सुखू धरती,
ऐबत त बरखा ह्वेकी गदना हूंदा वार-प्वार,
पहाड़ी मनखी, आसमान कु ओर देखणू चा,
अर उदास ब्वनू, बसगाल किलै नि लगणू चा,?
.
रौला-गदेरों मा बी, सुखूणू लगिगे पाणी,
परेशान छन, मनखी, जीव-जन्तु, प्राणी,
रोज घाम सुबेर बटी चटक लगणू दिदों,
पर भगवान का सौं, बसगाल नि आणी,
पहाड़ी मनखी परेशान ह्वेकी, बस ई सोचणू चा,
अबदा पहाड़ मा, बसगाल किलै नि लगणू चा,?
.
पालतू जानवरों खण, कखी घास नीच हारू,
खेत सब चौपट, परेशान किसान क्य जी कारू,
सब्बी मनखी मंदिर मा, पूजा कना अर ब्वना,
हे प्रभु! बरखा कैरो, हमल क्य बिगाड त्यारू,
मिथे इन लगमा इंद्रदेव बी, पहाड़ वलू थें ठगणू चा,
अगर यू बात निचत, बसगाल किलै नि लगणू चा,?
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मौसम वैज्ञानिक ब्वना, अबकी बार मानसून लेट आलू,
तबतक पहाडी, मनखी, जानवर घाम कु मार ही खालू,
उत्तराखंड का लोग ब्वना, ऐसे जादा देर अब क्य हूण,
हे म्यारा ईष्टदेव, तुम ही कारा जरा ऐ बसगाल थें चालू,
नथर यू तेज घाम, हम सब्बूथें अजगाल रोज मरणू चा,
तुम ही देखा माथ बटी, कि बसगाल किलै नि लगणू चा,?
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कवि- सतीश सिंह बिष्ट "पहाड़ी",
ग्राम- नैखाणा, (नैनीडांडा, धुमाकोट)
जिला- पौड़ी गढ़वाल,
उत्तराखंड,
1 टिप्पणियाँ
भौत सुन्दर
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