मिले थे जो मुकद्दर से

वो सिकंदर बन गए
हम बूंद में सिमट गए
और वो समुंदर बन गए।
संग संग चले थे राहों पे
कांटो को दूर करने को
खुद तो गुलशन हो गए
और हम कंकर बन गए ।
विष का प्याला हमने पिया
अमृत का स्वाद उन्हें दिया
जिंदगी खुशहाल हो गई उनकी
और हम बंजर बन गए ।
दुख का सामना हमने किया
सुख का अहसास उन्हें दिया
वो किस्मत के राजा हो गए
और हम कलंदर बन गए ।
जब जब मिलना चाहा उनसे
साये को भी ना आने दिया
भीड़ में वो सबके चहेते बने
और हम एक मंजर बन गए ।
तेरा चेहरा देख कर अब तो
खुद से भी नफरत होने लगी
इतनी आग सीने में दफन है
हम फूल से खंजर बन गए।।
बिजेन्दर सिंह रावत दगड़या
1 टिप्पणियाँ
बहुत सुन्दर।
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