मां............
बड़ा
पिशुन हूं बड़ा कुटिल हूं  ,
फिर
भी मां तुम प्यार करोगी  ।
कह
दो मां श्रिंगार करोगी  ।।
       आंसू लिखते नई कथायें  ,
       उर में बैठीं कई व्यथायें  ।
       लगता मुझको प्रिय मौन है ,
       किसे बताऊं मीत कौन है ।।
मेरे
शब्दों को माता तुम  ,
कह
दो गीता सार करोगी ।
क्रमहीन
मेरे शब्दों का  ,
कह
दो मां श्रिंगार करोगी ।।
       शब्दों का मैं बड़ा अकिंचन  ,
       मां माटी को कर दो चंदन ।
       तप्त जेठ में घन छा सकते  ,
     कर्दम में कुवलय आ सकते ।।
मां
इस गहरे पारावर से  ,
हाथ
थामकर पार करोगी ।
क्रमहीन
मेरे शब्दों का  ,
कह
दो मां श्रिंगार करोगी ।।
        शुष्क लेखनी की शाखी है  ,
        तिषा भरी उर की पाखी है ।
        तू कामाक्षी तू भाषा है ,
       वीणा तुझसे ही आशा है ।।
अपने
ऐक पुजारी की ही  ,
क्यों
कर मां तुम हार करोगी ।
क्रमहीन
मेरे शब्दों का  ,
कह
दो मां श्रिंगार करोगी ।।
    विधु नहीं तो तारक बनूं मां,
    तम का पर संहारक बनूं मां ।
    उर भीति से उन्मोचन कर दो ,
 इस अश्मसार को कंचन कर दो।।
हूं
कपूत फिर भी मां होकर ,
कह
दो कैसे खार करोगी ।
क्रमहीन
मेरे शब्दों का ,
कह
दो मां श्रिंगार करोगी ।।
     तुम ही शिव तुम प्रणव हो मां ,
     तुम करुणा की अर्णव हो मां ।
     मेरे शब्दों की तुम शाशक  ,
      हे देवी तू ही अघनाशक ।।
शब्द
गीत में पिरो सकूं मां  ,
इतना
तो उपकार करोगी  ।
क्रमहीन
मेरे शब्दों का  ,
कह
दो मां श्रिंगार करोगी ।।
      बड़ा पिशुन हूं बड़ा कुटिल हूं ,
     फिर भी मां तुम प्यार करोगी ।
     क्रमहीन मेरे शब्दों का  ,
      कह दो मां श्रिंगार करोगी  ।।
©डा०विद्यासागर
कापड़ी
 



 
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1 टिप्पणियाँ
बहुत सुन्दर
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