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Kya ye wahi pahar hai? Part 1 क्या ये वही पहाड़ है? भाग 1

क्या ये वही पहाड़ है?

रिंगाल(बांस) की टोकरी
जिसे हमने अपने बचपन मे देखा था। जहा मेरा परिवार नही हमारा परिवार था, जहां हर घर मे हर किसी का कुछ न कुछ रिश्ता था। अगर गांव में किसी घर मे कोई परदेश से लौटता तो गांव के हर घर मे चने और मिठाई बांटी जाती थी। भुजेले(पेठा) कि मिठाई में जो स्वाद था वो आज के काजू कतली में कहा। क्या रौनक थी मेरे पहाड़ में।
घर होता उसका एक आंगन होता उसमे माँ चचिया मिलकर ओखली में वो धान कूट रही होती दोनो के हाथ मे गंज्यले(ओखली में प्रयुक्त होने वाले मोठे आकर के बंबू) होते, थोड़ी सी दूरी पर दादा बकरी बाँधने के लिए रस्सी तैयार कर रहे होते, वही उनके बगल में चिनखि(बकरी का बच्चा/ मेमना) अटखेलिया करता कभै दादा की पीठ पर चढ़ने के प्रयास करता तो कभै दौड़कर हमारे पास आ जाता कूदता फुदकता। थोड़ी सी दूरी पर छानी(गौशाला) के आंगन से गाय रंभा माँ....... रही होती। जरा महसूस करो यदि आप जरा भी गांव में रहे हो और आपने ऐसे जीवन को जिया है तो कैसा लग रहा है आपको।
इधर हम सभी भाई बहनों को भी तो देखो हम क्या कर रहे है, हम छोटे छोटे घर तैयार कर रहे है कोई पत्थर ला रहा है तो कोई मिट्टी पानी, ये देखो इधर ये छोटे साहब तो आराम से मिट्टी खाने में व्यस्त है। ये हमारे आंगन के बाहर सगोड़ी(क्यारियाँ) छोटी छोटी पौध तैयार हो रही है। और वही अखरोट, सेब, संतरे अनार, पुलम(आलू बुखारा) पेड़ो से भरे बगीचे। और ठंडी बहती हवा, आहाहाः क्या ठंडक दे रही है शरीर को।
ये गाड़ी का हॉर्न बजा ये क्या ये तो बिस्वा का ट्रक था हा अब बजा गाड़ी का हॉर्न ये है gmou(गढ़वाल मोटर्स ओनर्स यूनियन) का हॉर्न ये क्या सब दौड़ गए देखने के लिए कोई उत्तर रहा क्या शायद कोई उत्तर तो रहा है। पर दिख नही रहा गाड़ी गयी, अरे ये तो ब्वाडा(ताऊ) जी है मल ख़्वाल के। व्है........ वापिस घर मे चलते है सीधा रसोड़े(रसोईघर)  की तरफ ओहो यहाँ तो बहुत धुंआ हो रखा है दादी दादी...... आंखे पोछते पोछते पहुँच गए अंदर दादी क्या बना रही है आज दादी ने कढ़ाई चढ़ा रखी है और उसमें एक डडलु(करछी) घुमाए जा रही है ओहो इसमे तो छंच्या(छांछ और सामक चावल/झुंगोरा से बनने वाला हल्का और हेल्दी भोजन) बन रहा है। ददी आज सपोड़ा सपोड़ी है।
अनु(मेरा बचपन का नाम) चल गोर(गाय) चराने, गाय पहुँच गयी जंगलो में न बाघ का डर न बन्दर न सुअर का डर गाय बकरी सब घास चरने में मस्त और हम अपने खेलो में, अरे...... ये क्या बकरी गयी उज्याड़(किसी खेत मे फसल खाने)। उधर से आवाज़ आ रही है किसकी है ये बकरी, कुछ गालियां भी चलो उड़ा दो हवा में क्या फर्क पड़ता है इन गलियों का। लेकिन बकरी ने तो गलती की है इसे तो सज़ा मिलेगी च तू आ अब ले कहा उज्याड़ कुछ कंकड़ उठाये और बकरी के मुंह मे भरकर थोड़ा मारा उसे अब कुछ दिन के लिए ये गलती बंद उसकी।
वो दूर कोई आ रही है ये कौन होगी अरे वाह ये तो कोई बटोही(राही) ही है शायद मायके से आ रही होगी या फिर मायके जा रही होगी।
हम : नमस्ते
वो महिला : सिर में कंडी(एक प्रकार की टोकरी जो अक्सर महिलाएं कही आने जाने में प्रयोग करती थी जो बांस से तैयार की जाती थी) रखे हुए नमस्ते।
हम: मैत(मायका) से या सौरास(ससुराल) से आ रहे होंगे।
महिला : मायके से
हम : वो जरा कलेऊ(मायके से ससुराल के लिए बनाकर लाये पकवान जैसे पूरी पकोड़ी, अरसे आदि) दे दो।
और वो महिला कभी ये नही पूछती थी कि आप कौन और क्यो दू। और न ही कभी हमने ये सोचा कि इस अंजान से क्यो कुछ  ले।
आब अगर बात की जाए विद्यार्थी जीवन की तो ये भी बड़ा रोमांचकारी था हमारा। गले मे पाटी(तख्ती) और हाथ मे कमेड़ू(सफेद चॉक वाली मिट्टी) की दवात जो पानी में भीगा होता था उसमें एक रिंगले(बांस की एक अलग प्रजाति) की कलम। घण्टी बजी प्रार्थना और इसके बाद एक या दो गुरुजी और 1 से लेकर 5 तक के सभी विद्यार्थियों को अकेले ही पढ़ाना और हम सबके बीच कोई एक तेज़ बालक जिसका विद्यालय में ही नही आसपास के सभी गांव में नाम कि फलाने का नाती बहुत तेज़ पढ़ाई में। 5 पैसे फ़ीस और कभै 5 पैसे हमे म्यल जाते तो किसी राजा से कम नही। अब मॉनिटर आया हमारी तख्ती में  अ आ लिख दिया और दूसरी तरफ १ से १० तक गिनती चॉक से अब उसपर हम कलम चलाएंगे अपनी। आधी छुट्टी की घण्टी बज उठी दड़ते हुए सीधे नदी में वहां नदियों में कच्ची बर्फ जमी होती वो तोड़ के खाना बर्फ़ क्या होती है हमे क्या मालूम ये तो खांकरी थी हमारे लिए। क्या स्वाद था दांत सील जाते थे लेकिन स्वाद की अजीब अनुभूति थी।
क्रमशः......................

अनोप सिंह नेगी(खुदेड़)
9716959339

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