आजम
केवल शीशी में ही गरल नहीं होता है,
होता ये रसना से निकले शब्दों में भी |
देशद्रोह केवल गोली से कब होता है,
छुपकर दौड़ रहा होता है नब्जों में भी ||
करते सैनिक माँ की रक्षा खेल मौत से,
उनको तेरा गाली देना यही जताता |
आजम तेरे रग में बहता देशद्रोह है,
तेरा इक-इक शब्द सदा से यही बताता ||
कैसे भारत माँ को डायन तू कहता था,
अब मारी है चोट वीरों की कुर्बानी पर|
आज मौन हैं पुरस्कार लौटाने वाले ,
कौन प्रतिकार करे तेरी मनमानी पर ||
तू भी माँ का बेटा है कैसी नादानी,
वीरों का अपमान सदा करते आये हो |
माँ को गाली देकर जिन्दा नहीं समझना,
आजम नित पल-पल ही तुम मरते आये हो ||
©डाoविद्यासागर कापड़ी
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