कहानी मेरी कुछ अज़ीब होगी
तुझसे शुरू है तुझपर ही ख़त्म होगी
चाहता हूँ मैं तुझे किस कदर
कैसे बताऊ तुझे ऐ मेरे हमसफ़र।
गई गर तू मुझे छोड़कर तो देख लेना
तुझसे पहले रुख़स्तगी मेरी होगी
वहा भी राहो में फूल बिछाये मिलुंगा
तुझसे पहले वहा मौजूदगी मेरी होगी।
तेरे बिन जीना पड़े मुझे ऐसा मैं होने न दुंगा
ख़ुद से पहले तुझे मैं जाने न दुंगा
तू सोच रही होगी जाने की
तुझसे पहले मैं ये दुनिया छोड़ दुंगा।
राह जिस तू जायेगी खड़ा मैं मिलुंगा
तेरे क़दम रखने से पहले उस जगह को गुलशन कर दुंगा
तू दो कदम ही चली होगी
और मैं सफ़र ख़त्म कर चूका हूँगा।
तू पहुचेगी जब वहां
आशियाना हमारा बन चूका होगा
तू पूछती है ये क्या पागलपन है
ये चाहत ही तो है मेरी जो मैं इतना कुछ कर गुजरूँगा।
अनोप सिंह नेगी(खुदेड़)
9716959339
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