न गंज्यलो की घम-घम च
न जन्दरो कु घरड़ाट च
चुल्लो मा भी आग नीच अब
छन्यो मा भी कीला ज्यूड़ा नि रैनी अब
पींडा कु तौलू भी सोचणु रैंदु
कख गौड़ी भैस्यू कु जब्लाट च
जै घासा का पैथर गाली खैएनी
अब वे घास कटण्या हाथ ही से गेनि
कख घासा की खुम(पलकुण्डि) होली
कख पिरुला की गडोली होली
सुबेर रतब्याण्या चली जांदी छै बेटी ब्वारी धाणा खु
नया जमना दगड़ी वो भी कन बदली गे होली
थमली दथुड़ी भी काकर ही रै गेनि
कुटला भी झणि अब कै पुंगडा हरचेनि
मौनू(मधुमक्खी) का जलठा भी अब नि रैनी
कागा बसदा छाई धुरपलि मा
वूल भी अब आणु जाणु छोड़ियेलि
जगरियु की डौर थकुलि भी अब नि बज्दिनी
मिजाण देबता भी अब मॉर्डन व्हैगेनि
अनोप सिंह नेगी(खुदेड़)
9716959339
2 टिप्पणियाँ
बहुत सुंदर कविता रची है अनोप सिंंह नेगी जी।
जवाब देंहटाएंशुक्रिया मित्र आपका
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