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मी अर मेरा पहाड़

मी तरसू वे पहाड़ खु, पहाड़ तरसू मीखु
मीमा वक़्त नि वेमा जाणा कु, वो हिली नि सकदु मीमा आणा खु
मी जांदू जब भी वेमा मी रुंदु छौ
वो हैसांदु च तब भी दुःख अपणा लुकैकि
आज ये पहाड़ की वा हालत करी च
पीड़ा त हुन्दी च वे थै पर कैमा बोली नि सकणु च
राजनीती का जाल मा मेरु पहाड़ हरचणु च
आण वला वक़्त मा हालत यी देखि मन यु बौलेणु च
क्या होलु ये पहाड़ कु सोची सोची
"खुदेड़" यु खौलेणु च
अनोप सिंह नेगी(खुदेड़)
9716959339

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