इस कदर डूबे उन के प्यार में जैसा पानी में पानी। दिल के जज्बात घल गए लब्जों में जैसे कवि में कहानी। अब खुद को तलासते है उन की आँखों में। जैसे मरुस्थल की रेत में मिलता हो पानी। आदमी
हुदू ने मुफ़्लिसी में दबिश दी मेरे बज़्म में गुलिशतां था जो दरख्तों की तरह दिखने लगा आज भी मेरा चमन हया में है मगर मदफूंन हूँ महजूज हूँ सुकून है जन्नत नही नसीब में पर मसरूर हूँ मसगूल हूँ आदमी
तू जमाने भर का दुलारा बन के देख, तू किसी की आँख का तारा बनके देख| अपने लिए तो सभी जीते हैं सागर, तू किसी बेसहारे का सहारा बनके देख | विद्यासागर कापड़ी
कास मै सब का प्यारा बन जाऊं, खुदा करे एक दिन तारा बन जाऊं, जिन्दगी में मुझे पाने की सब की चाह हो, बस इतना दूर जाऊँ की दुलारा बन जाऊं, आदमी
धुवण्य ह्वै गे अब य जून!! छलौरी चल यु काया बदलो!! फुंगड़ी कु माटु म रबदले जुंला!! अगास कु गैणा बण जुंला!! ज्वानी कु चबोड छोड़ लाटा!! जवठ म घनुड़ी सि घोल बणोंला!! !!आदमी!!
बहारें ढुंड़ेंगी हमें हम नजाने फिर कहाँ होंगे..? मत्ला तो ये है वो दिन न फिर अल्फांजों में बंयां होंगे,, तकदीर से मिले हो तो कुछ गुफ़्तगू ही कर लो,, जहाँ सब चले गए क्या पता हम भी वहाँ होंगे,, आदमी
हर कर्म की सजा यहां पहले से मुकर्रर है किसी की दुवा तो किसी की बद्द दुवा देवेश आदमी
मै हर साम यही सोच के पी लेता हूँ किस का क्या बिगाड़ा मैने, चलौ एक दिन और जी लेता हूँ आदमी
बरसती बुंदे सुहानी लगी टपकती छत बेगानी लगी दर्द हमारा बाँटे क्युं कोई दर्द ऐ दस्ता सबको एक कहानी लगी नादान
है ब्वै कन चौमास च लगीं मिथे मेरि सुवा की च याद आणि फ़ोन पैसा हुंदा त मि चम फोन करदु वीं कु मुखड़ी नेट म देखदु आदमी
तरूण परिवर्तन का वह वाहक है बदलेगा कल को , बोध पाता भाव तरूण. राजेन्द्र सिंह रावत दि०23/6/2017
किसी को सावन की पहली बारिश प्यारी लगी किसी को टपकते छत छुरी कटारी लगी अज मेरा दिल भी जार-जार रोया लोगों को मेरे आंसुओं की बारिष अधूरी लगी आदमी
पुरुष पत्थर है ---------------------- पुरुष पत्थर है सच ही तो है ऐसा पत्थर जो ढाल बनकर खडा है अपनो के बीच चट्टान सी हिम्मत लिये परिवार की नीव को मजबूत आधार देता हुआ पिता ,भाई, पति रुप में खडा है रक्ष…
सबसे ज्यादा पलायन पर रोता पहाड़ी है सबसे पहले पहाड़ को छोड़ता पहाड़ी है बैठा है शहर में ,बात करता घर गांव के समाज की देखो!कितना विचित्र प्राणी पहाड़ी है छोड़ आया व्यर्थ कारण पहाड़ को पलायन पर अब पहाड…
तल्खियां देते है लीग अब मेरे जख्मों पर।। कोई मरह्म तो दें जो जख्मों को भरें आदमी
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