झरना कितना सुंदर
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कोश कोश में रूप हैं अंतर।।
अमृत रूप दुग्ध नीर तेरा,
मन मस्तिष्क में छा जाती।
देख नयन भर सौंदर्य तेरा,
जीव नया जोश भर जाती।
प्रकृति चाह वाले तेरे अधीर।
ध्वल झरना तू------
शब्द किलकारी मन में जब,
हृदय हिलोरें झंझा कर जाती।
मधुरता तन स्पर्श होता जब,
ठंडी बूंदें शीतलता भर जाती।
शीतलता में सबकी तुझसे पीर।
ध्वल झरना तू------
ध्वल चांदनी में खुद सुंदरता,
अंतर्मन प्राय तुम बन जाती।
अलौकिक छवी में सरलता,
मादक निहार तुम बन जाती।
निरंतर रात्रि आगोश तेरा पहर।
ध्वल झरना तू------
भौतिक सुख से कोश दूर दूर
निर्मल स्वच्छता पाठ पढ़ाती।
भेदभाव में रहित जनित कर,
कर्म पथ निरंतर ज्ञान बांटती।
सर्वार्थ बिना तुम चलती निरंतर।
ध्वल झरना तू------
सुनील सिंधवाल "रोशन" (स्वरचित)
काव्य संग्रह "मंदाकिनी तट की छांव"
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