अपडा पहाड़ बोडि आवा,
सालौ बै छोडी घौर कूड़ी!
तुमतै बुलांणी, धै लगांणी!
गौं की माटी तुमुतै भट्यांणी
बौड़ी आवा बौड़ी आवा धै लगांणी।
देश परदेस विदेश द्यौखा
आज कन बिपदा आंई च
कामकाज छोड़ी सबुकि टक्क
गौं-मुल्के तरफ लगीं च।
गौं की माटी तुमुतै भट्यांणी
बौड़ी आवा बौड़ी आवा धै लगांणी।
मनखि भी द्यौखा,
कन जंजाळ मा फसिग्ये
न घौर, न बण !
कन अधबाटे मा रेग्ये।
गौं की माटी तुमुतै भट्यांणी
बौड़ी आवा बौड़ी आवा धै लगांणी।
काम काज भी छट्ट छूटी
द्यौ द्यबता भी रूठि गैन
मनख्या ज्वोन पर भारी,
सगत दुख-विपदा ऐग्ये।
गौं की माटी तुमुतै भट्यांणी
बौड़ी आवा बौड़ी आवा धै लगांणी।
बोड़ि आवा,बोड़ि आवा
अपडा पहाड़ बोडि आवा,
अंग्वाळ चम्म मारी धौरा
गौं मुल्क भ्येट्ये जावा।
गौं की माटी तुमुतै भट्यांणी
बौड़ी आवा बौड़ी आवा धै लगांणी।
---------@कविता कैंतुरा खल्वा लुटियाग चिरबटिया रूद्रप्रयाग
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