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Ab Itni Si Khwahish Hai -1 अब इतनी सी ख्वाहिश है -१

अब इतनी सी ख्वाहिश है -१
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Ab Itni Si Khwahish Hai अब इतनी सी ख्वाहिश हैरहता हूं शहर तेरे मैं अंजाना बनकर।
ख्वाहिश बस रहूं एक पैमाना बनकर।

शिकायत थी मरहूम जमाने से,
शिकायत कागज पन्नों रह गयी।
उलट पलट कर देखा तमन्ना से,
तमन्ना भी खाक वेजुबां हो गयी।
तमन्ना शिकायत पी रहा दर्द बनकर।
ख्वाहिश बस रहूं एक पैमाना बनकर।।

आइना देख लेता अपने ख्वाबों के,
आइने में भी अब वो फुर्सत कहां।
धूल थी ज़मीं जो मेरे जज्बातों के,
टुटा झरोखा ले गया न जाने कहां।
बिखर गया ख्वाबों का आइना टूटकर।
ख्वाहिश बस रहूं एक पैमाना बनकर।।

सर्द है मौसम थकी थकी देह भी,
तेरे शहर में मेरा आशियाना कहां।
कदम लड़खड़ाते जिस राहमें भी,
राह भी मेरे जज़्बात में मय्सर कहां।
गिरता संभलता रहा कदम कदम पर।
ख्वाहिश बस रहूं एक पैमाना बनकर।।

हंसी पल थे जमाने की रहबरी में,
मुद्दत से जमाने में मेरी पैरवी कहां।
पाके जो खो दिया उन अरमानों में,
शिकवा शिकायत लिए शब्द कहां।
जी रहा हूं दिल में अरमान दफन कर।
ख्वाहिश बस रहूं एक पैमाना बनकर।।

     सुनील सिंधवाल "रोशन"
  काव्य संग्रह "अनकहे लफ्ज़"

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