वीर देश को सम्भाल
(१)
अरि की कुटिल चाल, वीर देश को सम्भाल,
तलवार को निकाल, रण है पुकारता ।
लगाले तू जयकारा, माँ ने फिर है पुकारा,
वीरों ने जो उर धारा, प्रण है पुकारता ।।
समझो न मुझे तृण, मैं भी चुकाऊँगा ऋण,
यही भारती का तृण, तृण है पुकारता ।
कभी ध्वज न झुकेगा, पथ कभी न रुकेगा,
यही देश का भी कण,कण है पुकारता ।।
(२)
मन से रिपुता निकाल, नेह धुन की हो माल,
आये जब नया साल, मधु घोलें बोली में ।
कटुता के तीर तोड़, उरों से उरों को जोड़,
जाति बंधनों को छोड़, गायें गीत होली में ।।
मन में रहे उमंग, खेलें सब संग-संग,
नेह के बिखेरैं रंग, प्रीत घोलें रोली में ।
मिलें पथ में जो दीन, करें नहीं कभी घीन,
बजा करुणा की बीन, नेह डालें झोली में।।
(३)
उर में हो देश राग, अधरों में नेह फाग,
सजैं करुणा के बाग, कहे मातु भारती ।
घटायें न देश मान, याद रखें अभिमान ,
गायें सभी यही गान, जै हो मातु भारती ।।
देवजन,मुनि सारे, भोर में जिसे पुकारें,
भानु,शशि और तारे, नित करैं आरती ।
मनु,मुनि, ऋषि,हरि, रखैं सब उर धरि,
पावन है सुरसरि, पापियों को तारती ।।
©डा० विद्यासागर कापड़ी
सर्वाधिकार सुरक्षित
1 टिप्पणियाँ
बहुत ही शानदार।
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