Top Header Ad

Banner 6

Garhdesha Katha Uttarakhand Gatha by Virendra Juyal Upiri कथा गढ़देशा की उत्तराखण्ड गाथा बिरेन्द्र जुयाल उपिरी

कथा गढ़देशा की 





जख वीर भड़ो की खाण भा रे ।
जैकि सर्या दुन्यम् पछयाण भा रे ।।

जख ढ़ोल-दमौ रणसिंघ्या निशाण।
 द्यौ-द्यप्तों का गीत मंड़ाण भा रे ।। 

जख गंगा जी मैत त्रिजुगीनारैण । 
डांडा कांठौं हिंवळि डिसाण भा रे ।।

जख घुघुति घिंडुड़ि कफ्फू कदि।
धारा मंगरौं मा असन्याण भा रे ।। 

जख जंदिरि उरख्यळि घाण कुटै ।
 बेटि-ब्वारि भारि किसाण भा रे ।। 

जख हैळ निसुड़ि दंदळि कुटिळि। 
सारि पुंगड़ि नाजै घिमसाण भा रे ।।

जख मसूरी नैनीताल स्वाणौ लगद। 
च्यूड़ा अरसों की रस्याण भा रे ।।

जख जाड़ा ब्वाटौं सुमर्याण रैंद। 
ढुंगा माटा फरि भि पराण भा रे ।। 

जख मेळु काफल भिळ्णै दाणी।
अहा! मिट्ठी बोळि बच्याण भा रे ।। 

जख 'उपिरि' मनखि खैरि जोग्याण ।
वे गढ़देशा 'कथा क्या लगाण' भा रे।।

@🙏🏻 जै जुयाल ✍🏻जै गढ़वाल🙏🏻
         
 ©® ✍🏻वीरेंद्र जुयाल उपिरि

एक टिप्पणी भेजें

0 टिप्पणियाँ