सखी............
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नेह लगायो सखी छलिया सौं,
नेह की भाषा नहिं जानत छलिया।
करूँ मनुहार री आये वो गोकुल,
सखी यहि बात न मानत छलिया ।।
सखी सपनों में आवत वो ही ,
बंशी ले अधरन गावत छलिया ।
कछु नहिं है सखी जग माँही,
सखी उर मोरे तो भावत छलिया ।।
©डा० विद्यासागर कापड़ी
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