सागर के दोहे.........
( मैं और तू )
तू ही था सब ओर ।
अब जाना मैं कुछ नहीं ,
तू ही थामे डोर ।।
२- मैं तो रीता सा घड़ा ,
तू घट-घट का नाथ ।
मैं तब तक ही मैं रहे ,
जब तक तू है साथ ।।
३- मैं निपात की डाल है ,
तू तो है मधुमास ।
कोरोना की मार ने,
करा दिया आभास ।।
४- मैं सूखी सरिता बना,
तू है चातुर्मास ।
मैं सुदामा दीन अरे,
तू केशव का रास ।।
५- मैं माटी की मूरती ,
तू घट वासी जान ।
मैं ही हूँ मैं में सदा,
मैं को है अभिमान ।।
६- मैं दोषों की पोटली ,
तू तो है निर्दोष ।
मैं भूखा नित ही रहे,
तू के उर में तोष ।।
७- मैं ठहरा सा नीर है ,
तू तो बहती धार ।
मैं निपात की वाटिका,
तू ऋतु का श्रिंगार ।।
८- मैं कागा के बोल हूँ ,
तू कोयल की कूक ।
मैं उड़ जाता फूस सा ,
तू मारे जब फूक ।।
९- तू नित खिलता फूल है ,
मैं तो है ज्यूँ काँस ।
तू मोहन की बाँसुरी ,
मैं सूखा सा बाँस ।।
१०- तू परिमल की टोकरी ,
मैं में है दुर्गंध ।
मैं छूटे उर से कभी ,
पाऊँ तेरी गंध ।।
©डा० विद्यासागर कापड़ी
सर्वाधिकार सुरक्षित
मैं तब तक ही मैं रहे ,
जब तक तू है साथ ।।
३- मैं निपात की डाल है ,
तू तो है मधुमास ।
कोरोना की मार ने,
करा दिया आभास ।।
४- मैं सूखी सरिता बना,
तू है चातुर्मास ।
मैं सुदामा दीन अरे,
तू केशव का रास ।।
५- मैं माटी की मूरती ,
तू घट वासी जान ।
मैं ही हूँ मैं में सदा,
मैं को है अभिमान ।।
६- मैं दोषों की पोटली ,
तू तो है निर्दोष ।
मैं भूखा नित ही रहे,
तू के उर में तोष ।।
७- मैं ठहरा सा नीर है ,
तू तो बहती धार ।
मैं निपात की वाटिका,
तू ऋतु का श्रिंगार ।।
८- मैं कागा के बोल हूँ ,
तू कोयल की कूक ।
मैं उड़ जाता फूस सा ,
तू मारे जब फूक ।।
९- तू नित खिलता फूल है ,
मैं तो है ज्यूँ काँस ।
तू मोहन की बाँसुरी ,
मैं सूखा सा बाँस ।।
१०- तू परिमल की टोकरी ,
मैं में है दुर्गंध ।
मैं छूटे उर से कभी ,
पाऊँ तेरी गंध ।।
©डा० विद्यासागर कापड़ी
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1 टिप्पणियाँ
बहुत सुन्दर दोहे।
जवाब देंहटाएंईश्वर ही सब कुछ है।हम सभी परमात्मा की ही सन्तान है किन्तु देहभान में आकर हम सब कुछ भूल जाते हैं।
यदि आप इस पोस्ट के बारे में अधिक जानकारी रखते है या इस पोस्ट में कोई त्रुटि है तो आप हमसे सम्पर्क कर सकते है khudedandikanthi@gmail.com या 8700377026