सखी.............
![Sakhi सखी Sakhi सखी](https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEjAEmxSPUl5-l3yTUtPr1Y_c4xQAP8lOUAmM2rMqK16GH6pOZkVQ2Eqa2MwAtFu18FBpDD95lSy9n5yap4pSZKHQHCzZImzjGSEC2qDtH9g5XN0rMbj8wF6N9r91b9X7o35idgNY7JwCV8/s400/Sakhi.jpeg)
बीती उमर सखि आये न छलिया।
रोज मथूँ दधि,नौनि रखूँ री,
आये न घर सखि खाये न छलिया।।
पीपल पात हिलें तो लागत,
छोटो सो पग धरि आयो री छलिया।
आवें सपन मंद हँसत हरि,
सखि मोहे ऐसे रुलायो री छलिया।।
कछु न कहूँ, फोड़े मटकी वो,
आकर दरस दिखावै तो छलिया।
नित यमुना के तीर सखी री,
मधुरिम रास रचावै तो छलिया।।
©डा० विद्यासागर कापड़ी
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