हरी..................
जो तुम हो कृपानिधि तो अब ,
झट से आकर नेह जताओ हरी ।
राह न सूझत है नर को जी ,
तुम ही आकर राह बताओ हरी ।।
आवन कह आये नहीं तुम ,
अब सच कर बात दिखाओ हरी।।
भूल गयो नर नेह की भाषा ,
अब आकर तुम ही सिखाओ हरी।।
खाई थी जो तुमने सौं हरी जी,
उस सौं की अब लाज बचाओ हरी।
डूबती है तरणि धरती की,
इसको आकर पार लगाओ हरी ।।
©डा० विद्यासागर कापड़ी
सर्वाधिकार सुरक्षित
जो तुम हो कृपानिधि तो अब ,
झट से आकर नेह जताओ हरी ।
राह न सूझत है नर को जी ,
तुम ही आकर राह बताओ हरी ।।
आवन कह आये नहीं तुम ,
अब सच कर बात दिखाओ हरी।।
भूल गयो नर नेह की भाषा ,
अब आकर तुम ही सिखाओ हरी।।
खाई थी जो तुमने सौं हरी जी,
उस सौं की अब लाज बचाओ हरी।
डूबती है तरणि धरती की,
इसको आकर पार लगाओ हरी ।।
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