रोशन की कलम से--------
===============================================
क्या मिला माया से इस जग में,
कभी प्यार और कभी दुत्कार।
सिर्फ यहां सजा पीड़ा दरबार।29
आंखों में दो बूंद आंसु के बदले,
जीवन में क्या खोया और पाया।
दिन रात स्वपनों से शागिर्दी कर,
उलझनों का अंबार मिल पाया।30
दूध पिलाया जिसे अपना समझ,
फनधारी जहरीला नाग निकला।
कोसा था जिसको सपेरा समझ,
जीवन बैसाखी हमदर्द निकला।31
आघात और प्रतिघात कारण,
छलनी बस मन के जज्बात होते।
अपने दुख जब भी बांटना चाहा,
शंकाग्रस्त अपनों से ही होते।32
लड़ना है लड़ो दानव प्रवृत्ति से,
यहीं धर्म समर का कुरूक्षेत्र भी।
हार स्वीकार हो यदि अधर्म से,
खड़ा इंतजार मृत्यु का दरवार भी।33
प्रीत से कभी कभी असमर्थ बन,
असहाय भावनाएं जागृत होती।
कालान्तर में सहृदय निरंतरता,
विवेक से भावनाएं समर्थ बनाती।34
कठिन परिस्थितियों से गुजर,
जग हारा फिर भी राह निकलेगा।
अपनों के संग किये छदम कृत्य,
नजरों से हारा कैसे सुख भोगेगा।35
दुराचार बौद्धिक विचार ग्रसित,
क्षणिक सुखों का भागीदार होता।
दुत्कारा जाता जब सभ्य समाज,
दुःखी कर्मों इस काया को रोता।36
हंसता जब कोई तमाशबीन बन,
किसी की बेबस हालात देखकर।
रोने का फिर भागीदार बन जाता,
कभी न कभी जीवन पथ पर।37
बिकता कोई क्षणिक सुख खातिर,
लोभ में सत्य से अनभिज्ञ होता।
अहसानों के चक्रवात में फंसकर,
पल पल सर्वार्थ को धिकारता।38
फिर आगे------
सुनील सिंधवाल "रोशन" (स्वरचित)
काव्य संग्रह "चाहत के पन्ने"
1 टिप्पणियाँ
शानदार रचना
जवाब देंहटाएंयदि आप इस पोस्ट के बारे में अधिक जानकारी रखते है या इस पोस्ट में कोई त्रुटि है तो आप हमसे सम्पर्क कर सकते है khudedandikanthi@gmail.com या 8700377026