मां की यादें जब
सुख दुःख दर्द में वात्सल्य मां का होता।
विवश न होता जीवन क्षणों में,
मां की आज्ञा पालन
करता।
हृदय की गतियां महसूस कर,
पुनरावृत्ति में नाकाम
न होता।
सुख दुःख--------------------
धड़कन में--------------------
ममता भावना
के भाव समझ,
दिमाग के यदि दरवाजे
खोलता।
सच झूठ की पाठशाला पढ़कर,
तनिक भी भाग्य
नहीं कोसता।
सुख दुःख--------------------
धड़कन में--------------------
समयबद्ध हो कर चलता रहता,
आंखों में अश्रु गंगा न
बहती।
तजुर्बे का ध्यान मन
बांधकर,
दर्द का समुंदर मन घाव न
देती।
सुख दुःख--------------------
धड़कन में--------------------
आंचल पकड़कर
चलता तो,
पथ अपना
अवरोध न पाता।
ममता कहो या मन का विश्वास,
कदम कदम पर
मंज़िल पाता।
सुख
दुःख--------------------
धड़कन
में--------------------
क्षणिक सुखों की खातिर जब,
रिश्तों के बीच अवहेलना होती।
पग पग पर
प्रताड़ित होकर,
आंचल फिर ममता को
रोती।
सुख दुःख--------------------
धड़कन में--------------------
दुखों का
साया जब मंडराता,
हर दम मन
में बैचैनी बढ़ती।
मां आंखों की
भाषा समझकर,
मातृत्व आपना
आंचल फैलाती।
सुख
दुःख--------------------
धड़कन
में--------------------
अतीत हुए पन्नें जब भी
यादों के,
दिल के किसी कोने दस्तक देती।
जख्म हरे होते सिर्फ पश्चाताप के,
मां की ममता तब निशब्द होती।
सुख दुःख--------------------
धड़कन में--------------------
सुनील सिंधवाल
"रोशन"(स्वरचित)
काव्य संग्रह
"हिमाद्रि आंचल"
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