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Samansutam समणसुत्तं

उवसमेण हणेकोहं,माणं मद्यवंया जिणे!
आयं चडज्जव भावेण,लोभ संतोषओ जिणे!!
     :--समणसुत्तं.736

क्षमा से क्रोध का हनन करें,मादर्व से मान का को जीतें ,आजर्व से माया को और संतोष से लोभ को जीतें.


शुभ प्रभातम


संकलन:-
राजेन्द्र सिंह रावत
दि०22/6/2017

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