मेरा मन.....…......
संवरने का मन बहुत करता है
जब से हसरतों से देखता है कोई।।
बिखरने का दिल बहुत करता है जब से प्यार से अंजोता है कोई।।
अब रूठने का मजा आने लगा है जब से अपना बना के मनाता है कोई।।
सुनने को तरसते है कान अब मेरे जब से प्यार में गुनगुनाता है कोई।।
अब दूर जाने को तड़पता हूँ रात दिन जब से पास बुलाता है कोई।।
दर्द में छटपटाने को तरसता हूँ
जब से आग़ोश में भर के सताता है कोई।।
आंखे खुलती नही प्रियशी के प्यार में जब से हसीन सपने दिखाता है कोई।।
आज फिर खुस रहने का बहुत मन करता है जब खुसी दिखाता है कोई।।
सर्वाधिकार सुरक्षित देवेश आदमी
पट्टी पैनो रिखणीखाल
देवभूमि उत्तराखंड
®अप्रकाशित मौलिक कविता
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