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Jhoothi shaan झूठी शान

हम लोग झूठी शान,देखा देखी और भौतिक सुख की लालसा न रखते तो न आज भरतु की ब्वारी की करतूत लिखनी पड़ती और न ही भरतू की ब्वारी की पीड़ा लिखने की जरूरत पड़ती।

शिक्ष।,स्वास्थ्य,सड़कें,पानी,बिजली,आदी को मोहरा बनाकर पलायन आखिर कब तक ?
जबकि सच ये है बुनियादी सुविधाएं पहाड़ में अब पहले से बेहतर हुयी है।

जहां भरतु की ब्वारी अब खेती छोड़कर शहरों के बन्द दो कमरों के सपने सँजोती है वहीं भरतु भी अब हल्या न रहकर राजनीतिक चापलूसी और फ्री दारू मीट भात पचाना सीख गया ऐसे में भला भरतु और भरतु की ब्वारी खेती क्यों करे वैसे भी बीपीएल और मनरेगा क्या कम है ।

आखिर पलायन कर भरतु और भरतु की ब्वारी अब पहाड़ पलायन पर बड़े बड़े प्रेरक लेख लिखते है पहाड़ की ब्वारियो की पीड़ा लिखते है हलाकि ये खुद पहाड़ जाने और पहाड़ याद में रोज बड़े बड़े भावनात्मक पोस्ट डालते रहते है।
खैर मुझे आज भी भरतु की ब्वारी और भरतु के पहाड़ वापस आने का इंतज़ार है ताकि करतूत और कहानी लिखने की हमे जरूरत ही न पड़े

सबसे बड़ा सच तो यही है न अब भरतु की ब्वारी पहले जैसे पहाड़ नारियों की तरह मेहनती रही और न ही भरतु खुद अब पहाड़ मानुष जैसा कर्मठ रहा प्रतिफल हम सबके सामने है बंजर होते खेत खाली होते गाँव और पीड़ा लिखते हम तुम सब पर कब तक ????

सर्वाधिकार सुरक्षित सुरेन्द्र सेमवाल
S.semwal

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