गैल्या घुघती
हे गैल्या घुघती दिदै पैंछा लो पँखुर
भिटें औन्दु लो मैं मैतियों सणी
मिटै औन्दु रे गैल्या जुकड़ी रणमणि।
दी दै पैंछी अपड़ी मीठी मयाळी गळि
खुद मिटै औन्दु गैल्या भेजी-भूलों की
बुरांश फ्यूंली बरमिकोंल फूलों की।
दी दै पैंछु अपणु स्वाणु रूप रंग ढंग
बर्ति औन्दु लो मैं ऋतु बसन्त
सजै देन्दु मैं अफुड़ो हिमवन्त
दी दै पैंछु अपणु सीदू ठण्डो सुबौ
बन्धै औन्दु धैर्य धिर्जन टूटीं जुकड़ी
हंसे औन्दु गैल्या रोलिँ खोलीं मुखड़ी।
दी दै पैंछि अपणी मिठी घिच्ची
लगे देन्दु पाड़े मैं खेरी बिपता
सुणै औंदु अपणी संस्कृति सभ्यता।
दी दै अपणि अपणिती लो शांकी
समझै औंदु मैं लो अपणा ब्वै - बाबु
फोंजि औंदु बुढेन्दी आंख्यों क आँसू।
हे गैल्या घुघती!
तेरु ही दैणदार रोलू।
कवि-विक्रम शाह(विक्की)
हे गैल्या घुघती दिदै पैंछा लो पँखुर
भिटें औन्दु लो मैं मैतियों सणी
मिटै औन्दु रे गैल्या जुकड़ी रणमणि।
दी दै पैंछी अपड़ी मीठी मयाळी गळि
खुद मिटै औन्दु गैल्या भेजी-भूलों की
बुरांश फ्यूंली बरमिकोंल फूलों की।
दी दै पैंछु अपणु स्वाणु रूप रंग ढंग
बर्ति औन्दु लो मैं ऋतु बसन्त
सजै देन्दु मैं अफुड़ो हिमवन्त
दी दै पैंछु अपणु सीदू ठण्डो सुबौ
बन्धै औन्दु धैर्य धिर्जन टूटीं जुकड़ी
हंसे औन्दु गैल्या रोलिँ खोलीं मुखड़ी।
दी दै पैंछि अपणी मिठी घिच्ची
लगे देन्दु पाड़े मैं खेरी बिपता
सुणै औंदु अपणी संस्कृति सभ्यता।
दी दै अपणि अपणिती लो शांकी
समझै औंदु मैं लो अपणा ब्वै - बाबु
फोंजि औंदु बुढेन्दी आंख्यों क आँसू।
हे गैल्या घुघती!
तेरु ही दैणदार रोलू।
कवि-विक्रम शाह(विक्की)
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