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Dholki Bichari ढ्वलकी बिचरी

फिर से एक बार अपणा उत्तराखंड का बाजौं तैं समर्पित एक रचना

       "ढ्वलकी बिचरी"

ढ्वलकी बिचरी कीर्तनौं मा,
भजन गांदी, खैरी विपदा सुणादी।
पढै लिखैई बल अब छूटीगे,
एक सुपन्यु छौ मेरू, ऊ बी टूटीगे।

ब्वै बुबा बल म्यरा, दमौ अर ढोल,
अब बुढ्या ह्वैगेनी।
भै भौज डौंर अर थकुली, गरीब रै गेनी।
छ्वटी भुली हुड़की झिरक फिकरौं मा,
चड़क सूखीगे।
हंसदी ख्यल्दी मवासी छै हमारी,
झणी कैकु दाग लगीगे।

ब्वै बाबा, भै भौज भुली मेरी बेचरी
कै बेल्यौं बटैई, भूखा प्वटक्यौं बंधैई
भजन गाणा छन, द्यव्तौं मनाणा छन।
मी ल्हीजांदु कबर्यों कुछ त,
ज्यु बुझाणा छने।
मामा मस्क्या बी तखुंदै कुछ,
काम खुज्याणा छन।

देखी हमरी या दशा,
औफार डीजे वीजे विलैती बाबू ,
गिच्चु चिड़ाणा छन,
ठठा बणाणा छन, दिल दुखाणा छन।
ढ्वलकी बिचरी खैरी लगौंदी, ढ्वलकी बिचरी।।

सर्वाधिकार *सुनील भट्ट*
17/06/17

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