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Maityun Ki Khud Ma मैत्युं की खुद मा


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मैत्यु की खुद म


सौण की रुण झुण बरखा म
बैठियु छौ यखुलि घोर म
बर्खा की टप टप बूंद देखि
खुदेणु छौ मैत्यु की खुद म
डांडी काण्ठियों म कालि कुरेड़ी चम्म लैगे,
गौं गला बुड्या ब्वै बाबू की याद ऐगे।
बैठिया होला दाना सयणा अपड़ि निवति कुणेठी म
बर्खा की...............................

भैजी भुला जागणा होला धियाण मैत आली,
भुला का गला भ्येन्टेक हाथु म राखड़ी पैराली।
एक मूट चीनी की रखलि चम भुला की घीचि म
बर्खा की..................................

यखुलि बैठिक मैत ख्यालू म ख्वेगे,
सोण की बरखा भागली पिछने बिटि कृष्ण जन्माष्ठमी ऐगे।
सन्क्वाल मैत जोलू काखड़ी मुंगरी खोलू गैल्याणि का गैल म
बर्खा की .................................



तौं डांडियों का पार मेरु मैत भलु रौतियालु होलु
हे घणा बादल छांटा ह्वै जावा मेते मेरु मैती मुल्क दिखेलु ।
तुमुतै खबर नि सेत मैं बैठियु छौ बस यीं आस म
बर्खा की .................................


बादळून भि पुकार सुणि सि भी छांटा ह्वै गिनी,
मैत की डांडियों म चम सूरज की किरण लैगिनि।
मैत द्वी दिन कू समाज कु फर्ज
रण हमेशा अपड़ि ही ससुराल म
बर्खा की.........................

डांडी कांठी भरी छन हैरी हेर्याली,
राजी खुशी रखी भै बैणियो देव तेरी रखवाली।
सौण की गाड़ गदनि आयीं होली
सकुशल रयां घर बार म
बर्खा की टप टप बुंद देखि
खुदेणु छौ यखुलि मैत्यु की खुद म


       सर्वाधिकार सुरक्षित  कवि :-  संजय चौधरी



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