एक चुभन
एक सत्य वाकये पर आधारित यह कविता लिखने की प्रेरणा मिली बलोड़ि जी से जो काफी समय के पश्चात् अपने पुत्र को गाँव लेकर गए वहा अपने मकान के हालात देखे और बोल उठा देखो पापा का मकान गिर गया। बलोड़ि जी को चुभी वह बात और उन्होंने मकान बनवाना शुरू कर दिया। दोस्तों कही आप सबके साथ भी ऐसा न हो इसलिए ध्यान रखे मकान को घर बनाने का प्रयास जरूर करे।
वो देखो पापा का मकान गिर गया
एक चुभन हुयी हृदय में और मकान फिर से बन गया
मकान तो बना किन्तु घर कब बनेगा?
शायद उसे फिर एक सवाल करना पड़ेगा।
एक चुभन हुयी हृदय में और मकान फिर से बन गया
मकान तो बना किन्तु घर कब बनेगा?
शायद उसे फिर एक सवाल करना पड़ेगा।
काश! खेत भी उसे दिखाया होता!
कह देता खेत पापा का बंज़र पड़ गया
फिर से एक चुभन होती खेत आबाद होता।
देख लेता अगर वो सूखी पड़ी नदी को!
कहता पापा की नदी सूनी पड़ी है
फिर एक चुभन होती नदी छलछला उठती।
कह देता खेत पापा का बंज़र पड़ गया
फिर से एक चुभन होती खेत आबाद होता।
देख लेता अगर वो सूखी पड़ी नदी को!
कहता पापा की नदी सूनी पड़ी है
फिर एक चुभन होती नदी छलछला उठती।
देख लेता वो बर्बाद उन जंगलो को!
कहता देखो जंगल पापा का जल रहा
फिर एक चुभन होती जंगल लहरा उठता।
देख लेता जो समूचे उत्तराखण्ड को!
कहता पापा का उत्तराखण्ड खण्ड खण्ड हो रहा
फिर चुभन होती और उत्तराखण्ड अखण्ड हो उठता।
फिर एक चुभन होती जंगल लहरा उठता।
देख लेता जो समूचे उत्तराखण्ड को!
कहता पापा का उत्तराखण्ड खण्ड खण्ड हो रहा
फिर चुभन होती और उत्तराखण्ड अखण्ड हो उठता।
अनोप सिंह नेगी(खुदेड़)
9716959339
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