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सिंगोरी


नमस्कार दोस्तों आज आपके सामने एक ऐसे खाद्य पदार्थ के बारे में जानकारी लेकर आया हूँ जिसका नाम सुनते ही आपके मुह में पानी आ जायेगा यह उपलब्ध होता है उत्तराखण्ड में। जी हां तश्वीर को देखकर आप समझ ही गए होंगे की बात हो रही है किसी मीठे खाद्य पदार्थ की। टिहरी से इसे पहचान मिली है, शहरो में जिस प्रकार हम कुल्फ़ी आदि का स्वाद लेते है देखने में यह भी कुछ ऐसा ही लगता है, लेकिन दोस्तों यह है सिंगोरी जिसे लोकल भाषा में में सिंगोड़ि या सिंगौरी के नाम से भी जाना जाता है। उत्तराखण्ड के साथी तो शायद इससे परिचित ही होंगे लेकिन बाकि साथियो को बताते चले की यह एक मिठाई की तरह ही है जो की शुद्ध खोया से बनती है और मालु के पत्ते में परोसी जाती है यह कलाकन्द की तरह ही एक मिठाई है। दोस्तों यदि आप भी इस मिष्ठान का स्वाद लेना चाहते है तो इसमें बहुत अधिक समय और सामान की आवश्यकता नही पड़ती है आप घर पर भी इसे तैयार तो कर सकते है लेकिन इसे खाने का असली स्वाद तो मालु के पत्तो में ही आता है। इसके लिए आवश्यकता होती है:-
खोया, बारीक़ सफ़ेद चीनी, नारियल, कुछ गुलाब के फूल बारीक़ सूखे पिसे हुए, और परोसने के लिए मालु के पते।

सबसे पहले खोये को चिकना और मुलायम होने तक मिलाये फिर किसी बर्तन में खोये के साथ चीनी मिलाये लगभग 10 मिनट तक या खोया मेल्ट होने तक खोया और सुगर को हल्की धीमी आंच में पकाये। अब इसमें क्रश किया हुआ नारियल मिलाये और दुबारा 10 से पंद्रह मिनट के लिए पकाये। अब इसे आंच उतार ले और ठंडा होने दे इसके बाद मालु के पत्तो को कीप के आकार में बना ले और इनमे परोसे साथ ही गुलाब की पंखुड़ियों से इन्हें सजाये।

अब तैयार है आपके सामने सिंगोरी। तो दोस्तों  सिंगोरी का स्वाद अवश्य चखे और जब भी उत्तराखण्ड जाये तो वहा सिंगोरी खाकर आये।

अनोप सिंह नेगी(खुदेड़)

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