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Dard Kisan Ka

     नमस्कार दोस्तों आज कुछ अलग लिखने का मन किया तो सोचा क्यों न वो लिखू जो हक़ीक़त है जिसकी हमारे देश में हर किसान को जरूरत है। 
गत कुछ महीनों पहले मैं उत्तराखण्ड के एक ऐसे अभियान से जुड़ा जो की हमारे लिए और उत्तराखण्ड के विकास के लिए बहुत ही आवश्यक है, यदि इस अभियान को कामयाबी मिलती है तो जरूर हमारा उत्तराखण्ड विकास की ओर अग्रसर ही नही बल्कि विकास की सीमा के अंतर्गत होगा। जी हां दोस्तों आप बिल्कुल सही समझे मैं बात कर रहा हूँ "गरीब क्रांति अभियान" की। इस विषय पर भी जरूर अपनी आगे आने वाले लेख में लिखुंगा। यह अवसर मुझे प्राप्त हुआ की मैं भी इस अभियान का एक छोटा सा सदस्य बना। इसके लिए मई भाई अनूप पटवाल जी का धन्यवाद करना चाहूँगा की उन्होंने मुझे इस अभियान से जोड़ा नही तो शायद चकबंदी है क्या मैं इसी सवाल में उलझ कर रह जाता। दोस्तों आप भी जरूर अपना योगदान अवश्य इस अभियान को दीजिये।
     फ़िलहाल मैं अपने उस यात्रा वृतांत को लिख रहा हूँ जो मैंने चकबंदी दिवस समारोह गैरसैण के लिए जाते हुए देखा और किसानो की समस्याओ को सुना। तो आइये दोस्तों जाने क्या है ये समस्याएं। यदि आप सहमत हो तो अपने सभी साथियो के साथ इस लेख को अवश्य साँझा करे।
     28 फरवरी 2016 की रात यात्रा शुरू होती है अभियान के कुछ मित्रो के साथ विकास ध्यानी जी, दीनू चतुर्वेदी जी, शंकर ढौंडियाल जी, अनूप पटवाल जी, राकेश रावत जी तथा अनूप सिंह रावत जी, वापसी में साथ थे अनूप पटवाल जी। सफर शुरू हुआ तो आपस में एक दूसरे को जाना। सुबह हुई देविभूमि में जोश पूरा था आगे साथ मिला हमे रामनगर से श्री जगमोहन(जिज्ञासु) जी का साथ में श्री रविन्द्र कुंवर जी(महाराष्ट्र से) और श्री नितिन पंवार जी(महाराष्ट्र) आगे अब शुरू हुआ असली सफर यहाँ से कुछ दूरी पर भिकियासैण आदि कई गाँव में हम जब चकबंदी अभियान के लिए जन जागरण करते हुए आगे बढे तो अनुभव हुआ की सच में किसान की क्या समस्याएं है, वो क्या चाहता है, और क्या होना चाहिए।
     आज उत्तराखण्ड राज्य को गठित हुए लगभग डेढ़ दशक बीत चुका है लेकिन विकास के नाम पर बस विनास ही हो रहा है। राज्य के विकास की बाते तो सभी करते है, लेकिन जो धरती जो राज्य कृषि आधारित कृषि प्रधान राज्य हो कृषि पर निर्भर हो वहाँ कृषक को ही नजरअंदाज कर दिया जाय तो क्या राज्य विकास कर पायेगा? शायद नहीं आज यही हो रहा है पूरे उत्तराखण्ड में कृषि मेले तो लगाये जाते है शहरी क्षेत्रो में लेकिन क्या उन किसानो को पता भी है की इस मेले का आयोजन क्यों किया गया? कब किया गया? कहाँ किया गया? शायद ही किसानो को ज्ञात हो।
विकास कैसे किया जाय ये आप हम शायद सभी जानते है लेकिन किस प्रकार किया जा सकता है शायद इसका बेहतर जवाब शहरो बैठे मंत्री या नेता नही बल्कि वहा परिस्थितियों से लड़ रहे ग्रामीण अधिक बेहतर ढंग से सुझाव दे पाएंगे। यही अनुभव मुझे वहा मिलने वाले हर नागरिक से मिला जिनसे भी हमने बात की।
     एक शब्द जो आज उत्तराखण्ड में आम हो गया है "पलायन" कुछ सालो पहले ये शब्द कोसो दूर था क्योकि लोग बाहर तो तब भी जाया करते थे लेकिन लौटकर वापस गाँव लौट जाया करते थे लेकिन अब ऐसा नही होता। इस पलायन की चपेट में मैं स्वयं भी हूँ लेकिन आज भी आत्मा मेरी पहाड़ो में ही बसती है। किसान आज भी मेहनत पूरी करता है फ़र्क़ इतना है की मौसम ने अपना वक़्त बदल लिया है जब बारिश की जरूरत होती है तो सूखा पड़ जाता है और जब किसी तरह मेहनत करके फसल को बचा लेता है किसान तब फिर मौसम की मार बेवक़्त बारिश। अब ये तो है प्राकृतिक इसे आप हम या किसान कोई नही रोक सकता लेकिन क्या किसानो ने  इतने सब हो जाने के बाद भी जो बचाया क्या उसे उचित मेहनताना मिला नही, कारण राज्य में गाँवो से दूर-दूर  तक कोई विपणन केंद्र न होना मज़बूरीवस किसान नाजायज कीमत पर फसल का सौदा कर लेते है। क्योकि किसानो तक व्यापारी पहुचते है, वो अपनी मर्ज़ी के भाव देकर उनसे अनाज लेकर आते है और फिर शहरो में आप हम लोगो को किस भाव पर मिलता है ये आप देख ही रहे है।
क्या सरकार को इस विषय में किसानो की मदद नही करनी चाहिए?
   क्या सिचाईं के लिए किसानो की मदद करना सरकार का कर्तव्य नही है?
नदियो के प्रदेश में भी यदि खेती सिचाईं के कारण बर्बाद हो जाती है तो इससे बड़ी शर्म की बात और क्या हो सकती है राज्य के लिए।
        खेती क्यों नही करना चाहते किसान?
1     किसान उत्तराखण्ड में खेती नही करना चाहते है            कारण यही की पैदावार की उचित कीमत न मिलना।
2     सिचाईं का उचित प्रबंध न होना।
3     सरकार की तरफ से विपणन केंद्र न होना।
4     व्यापर के लिए बाज़ारो की कमी।
5     जानवरो से फसलों की सुरक्षा कर पाने में   असमर्थता।
6     जमीन एक ही जगह व्यवस्थित न होना।
     ऐसे कितने ही बिंदु है जिनपर सरकार को आगे आकर किसानो की मदद करनी चाहिए, शायद ऐसा होता है तो तब कही जाकर उत्तराखण्ड राज्य विकास कर सकेगा।
            क्या चाहता है किसान?
1     जो पैदावार है उसके उचित दाम मिले।
2     सिचाईं के लिए ट्यूबवैल या नदी से खेतो की सिचाईं का        प्रबंध।
3     ग्रामसभा स्तर पर विपणन केंद्र।
4     जमीन एक ही स्थान पर हो अर्थात चकबंदी हो।
5     सबसे बड़ा सब्सिडी जैसे कैंसर की समाप्ति।
      ये सबसे चौकाने वाली बात थी की सब्सिडी नही चाहिए आज भी उत्तराखण्ड में लोग सब्सिडी से दूर रहना चाहते है वो नही चाहते की उन्हें इस प्रकार से राशन दिया जाय। हम स्वयं खा कमा सकते है।
और शायद ये उनकी सोच सही भी है क्योकि इस सब्सिडी ने हर कामक़ाज़ी इंसान को भी अपंग और निकम्मा बना दिया है। घर में जब सस्ता राशन मिल रहा है तो किसान भी सोचता है फिर खेती करने से क्या फायदा। कौन इतनी मेहनत करे।
"किसान की जीत राज्य की जीत
राज्य की जीत देश की जीत
देख लो इतिहास में झांककर
अपना पूरा अतीत"
     तो दोस्तों निचोड़ एक ही है की यदि खेती कही भी हो एक ही सामने हो तो किसान की मेहनत भी कम किसान खेती करने को भी राजी, और यदि खेती भरपूर मात्रा में हुई तो नजदीकी बाजार भी बनेंगे, पलायन भी रुकेगा, और शायद हम जो लोग गाँव छोड़ चुके है वापस अपने गाँव की ओर लौटेंगे।
तो दोस्तों सभी किसानो के हित में सोचे क्योकि
"किसान बढ़ेगा तो राज्य बढ़ेगा"
तो दोस्तों ये था मेरा अनुभव आपको यह लेख आपको कैसा लगा जरूर बताये। मैंने प्रयास किया अब आपकी बारी है आप भी जरूर आगे बढ़ाये।

अनोप सिंह नेगी(खुदेड़)

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