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Suno Manuj सुनो मनुज

 सुनो मनुज...........

Suno Manuj  सुनो मनुजजग के जंजालों में बँधकर,
                 तू कहाँ संलिप्त है।
पेट,पीठ मिल एक हुए हैं,
                जठराग्नि उद्दीप्त है।।

कब से समेट रहे मनुज तुम,
                      कैसे ले जाओगे।
छोड़ यहीं सब जाना होगा,
                 भू में मिल जाओगे।।

जिसको तू कहता है मेरा,
                 कल औरों का था रे।
चुरा रहा है अरे शहद तू,
                  यह भौरों का था रे।।

तम में है तू ,भज ले हरि को,
                 नाम नित विदीप्त है।
पेट,पीठ मिल एक हुए हैं,
               जठराग्नि उद्दीप्त है।।

जग तो तेरा रैन बसेरा,
                    आना-जाना फेरा।
वही घूमता चौरासी में,
                     माया ने हो घेरा।।

झूठ,दम्भ तू छोड़ अरे ले,
                हरी नाम का रस रे।
पता नहीं इस झूठे जग में,
                कब कोरोना डस ले।।

भव से तरने को मनु तन ही,
                    सुन रे संदीप्त है।
पेट ,पीठ मिल एक हुए हैं ,
                जठराग्नि उद्दीप्त है।।

जग के जंजालों में बँधकर,
                  तू कहाँ संलिप्त है।
पेट ,पीठ मिल एक हुए हैं,
                जठराग्नि उद्दीप्त है।।

   ©️डा० विद्यासागर कापड़ी
          सर्वाधिकार सुरक्षित

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