तरक्की
चाँद तारों को छूकर,
पर बिन आदमियत,
जश्न ये भाता नहीं है।
छूती गगन को अट्टालिका है,
है अभिराम पूजाघर तुम्हारा।
हैसियत बढ़ाता श्वान कीमती तुम्हारा,
पर माँ बिन घर ये सुहाता नहीं है।
गोया फुरसत में काया सजी है,
तो मन भी धवल ऐसा बना लो।
चमक लेबल की होती क्षणिक है,
बिन असबाब सम्मान आता नहीं है।
लकीरें मुक्कमल होती नहीं हैं,
काश!सा कुछ रह जाता है अधूरा।
बन्द मुठ्ठी मुस्तकबिल सजता नहीं है,
कर्म से बड़ा कोई दाता नहीं है।
मर्म समझ लो गहरा नहीं है,
बुद्धि पट खोलो पहरा नहीं है।
कैसी है मंजिल जिसकी दौड़ अंधी,
जग में शाश्वत कोई नाता नहीं है।
नौ तुम जिसको समझते रहे हो,
छः वो मुझको लगता रहा है।
पूछते रहिये मन दर्पण को हमेशा,
प्रशंसा गीत वो गाता नहीं है।
सर्वाधिकार सुरक्षित - नन्दन राणा
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