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Sarhad Ladlo Se सरहद लाडलों से

सरहद लाडलों से
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Sarhad Ladlo Se सरहद लाडलों सेवतन से जब भी आंसुओं की गंगा बहती।
सरहदों  मेरे लाडलों  की पहरेदारी रहती।
उनींद झपकती आंखों में,
               जब भी नींद  भारी  होती।
कर्तव्यों  से   बंधे   मन में,
               सरहद  जिम्मेदारी  होती।।
रखवाले बन कर्तव्यों की चौकीदारी होती।
सरहदों  मेरे लाडलों  की पहरेदारी रहती।।
आतंक  समूल  सर्वश्व को,
               मोर्चा   पर   निगाह   होती।
अपनों  के जीवन भार को,
               कदम कदम पर मौत होती।
सिर कफन बांध मोर्चा की  घेराबंदी होती।
सरहदों  मेरे लाडलों  की पहरेदारी रहती।।
कभी  दुश्मनों  की भीड़ में,
               प्रहार अपनों से  ही  होती।
नजर  कैसे  रखें  अपनों में,
               सरहद नासूर उन्हीं से होती।
दुश्मन घावों से भी ज्यादा अपनों से होती।
सरहदों  मेरे लाडलों  की पहरेदारी रहती।।
लिपटे   कफन में   सरहदों,
               तिरंगे से अश्रु  विदाई होती।
लाडों पाला  पोसा  जिसने,
               सूनी गोद उसी मां की होती।
देशहित ममता आंचल की  परीक्षा होती।
सरहदों  मेरे लाडलों  की पहरेदारी रहती।।
बीरांगनाओं  चढे तिलक से,
               सरहदें   सामर्थ्यवान   होती।
ढृढ मनोंरथ तिलक माथे की,
               कालग्रास वही  सिंदूर बनती। 
जग सोता जौहर की वही सुहागन बनती।
सरहदों  मेरे लाडलों  की पहरेदारी रहती।

   सुनील सिंधवाल "रोशन"(स्वरचित)
       काव्य संग्रह "हिमाद्रि आंचल"

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