ओ पथिक............
ओ पथिक ये जान ले तू,धूल भी है राह में।
आह भी मिलती यहाँ रे,
शूल भी हैं चाह में।।
डिग न जाना ध्येय पथ से,
परख होती है बड़ी।
पाथरों की भी लकीरें,
राह होती हैं खड़ी ।।
मेहनत की हों शिरायें,
बाँह में चढ़ती हुईं ।
मंजिलें आतीं स्वयं ही,
राह में बढ़ती हुईं।।
ढूँढना होगा मणिक तो,
जलधि के ही थाह में।
ओ पथिक ये जान ले तू,
धूल भी है राह में।।
दीप तुझको ही जलाना,
है पथिक निज राह में।
काल फिसले ना तनिक भी,
दूसरों की चाह में।।
भूलना ना भू कभी तुम,
आसमां की चाह में।
ओ पथिक ये जान ले तू,
धूल भी है राह में।।
काल सम रहता नहीं है,
बात ये तू धार ले।
विफलता सोपान सी है,
तू हताशा मार ले।।
देख साहस जीत तुझको,
आ भरेगी बाँह में।
ओ पथिक ये जान ले तू,
धूल भी है राह में।।
©डाo विद्यासागर कापड़ी
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1 टिप्पणियाँ
लाजबाब।
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