मेरी घनाक्षरी..........
(राष्ट्र धर्म)
राष्ट्र धर्म से तो बड़ा , धर्म कोई और नहीं,
राष्ट्र धर्म हित जो भी,कष्ट आये सहिये।
राष्ट्र को जो धर्म अरे,डाले सदा संकटों में,
उसे धर्म नहीं यारो,कुछ और कहिये।।
एकता की नद बहे,जिस ओर मेरे भाई,
राष्ट्र प्रेम यदि है तो,उस ओर बहिये ।
देश ही खिलाता और,पिलाता है यारो मेरे,
अरे देश हितकारी,बनकर रहिये।।
सही को बताओ सही,गलत,गलत मान,
दिन को तो दिन कहो,रात,रात कहिये ।
अरे ढहना हुआ क्या,निज हित भाई सुन,
ढहना ही है तो फिर,देश हित ढहिये।।
देश बरबाद कर ,हूर कहाँ मिलती हैं,
भारती को मातु मान,ऐसा नहीं कहिये।
देश रहेगा तभी तो,तुम भी रहोगे भाई ,
देश हित में ही सारे, हानि-लाभ सहिये।।
©डा० विद्यासागर कापड़ी
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