मेरी बाल कविता.........
(दादाजी)
कोरोना फैला है दादा,
लाठी ले जाते छत पर ही,
छत पर घूम टहलते ।।
पानी पीते गरम सदा ही,
हाथ सदा हैं धोते ।
करते नमक गरारा दादा,
गहन नींद हैं सोते ।।
पोते को भी यही सिखाते,
घर से नहीं निकलना ।
हाथों में नित सैनीटाइजर,
लेकर के तुम मलना ।।
कहते और नहीं है पोते,
इसका कोई चारा ।
रहैं सभी घर ,कोरोना से,
मिल जाये छुटकारा ।।
©डा० विद्यासागर कापड़ी
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