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Bagat Sabu Aundu Bhayo बग्त सबू औंद भयो

बग्त सबू औंद भयो,
अहम का पंख लगण न द्या।
पाळे स्यक्की रतब्यणी तक,
मन सुर्ज डुबण न द्या।

अपड़ा खुटा अड्येक राखा,
यीं धरती अर माटी मा।
माटिन माटी मा मिलण चुचा,

सौंण-भादो अंध्यरी रात,
थरथर काँपदा शरील-गात।
पर शर्द ऋतु जुन्यळी चमकली,
अपड़ी आस टुटण न द्या।

जैन नि सै लमडणें पिड़ा,
चलण तैन कभी सीखी नी,
बैशाख मैना रूड़ ही सजदी,
बैमौसम छोया फुटण न द्या।

बिना कूट्याँ स्वौनू खरू नि बण्द,
तप्यण द्या यीं भट्टी मा,
रीत सुल्टी चला भाई बन्दौं,
खट्टा से पैली मिठ्ठू बँटण न द्या।

जथगा फूल औंदा चौक डाळी,
फल तथ्या लगदा नी।
ज्यूँदू रौंण त संघर्ष करा,
हातों की हरगत रूकण न द्या।

मनखी ज्वौन भौत मैंगी,
सुदी-मुदी यनि गवाँ ना,
प्यौट कुकूर-बिरळा भि भरदा,
सोच प्यौटे पर रुकण न द्या।

सुबेर उठी यनु ध्यान हो,
कि आजा दिन क्य भलू काम हो।
ब्वै-बाबै तुम पर आस च लगीं,
आस तौंकी टुटण न द्या।

सर्वाधिकार सुरक्षित-©नन्दन राणा®

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